पटना कलम का तात्पर्य चित्रकारी की पटना शैली से है। बिहार में चित्रकला का व्यापक विकास पटना कलम के रूप में हुआ। मुगल सम्राट औरंगजेब के समय राजकीय संरक्षण से वंचित चित्रकार मूर्तिकार जीविकोपार्जन के लिए देश के अनेक प्रमुख नगरों में गये। उसी क्रम में कुछ पटना भी आए। उनमें दिल्लीवाली चित्रकारी की विशेषताएँ तो थी ही, परन्तु स्थानीय प्रभाव से कुछ नई विशेषताएँ भी उभरी। उस नई शैली को पटना शैली या पटना कलम नाम दिया गया। पटना कलम के चित्रों के विषय पशु-पक्षी, प्राकृतिक दृश्य, किसान, लघु व्यवसायी, नाई, धोबी, बढई, लोहार, मोची, तेली, मिस्त्री, गरीब ब्राह्मण, मुनीम, जमींदार आदि के जीवन और कार्य हुआ करते थे। पटना शैली का काल सन् 1760 के आसपास से सन् 1947 तक माना जाता है।