मेरे प्रिय साहित्यकार(Litterateur) प्रेमचंद जी हैं। प्रेमचंद (1880-1936 ई०) प्रेमचंद का जन्म काशी के लमही नामक गाँव में 1880 ई० में हुआ था। इनके पिता का नाम अजायब राय तथा माता का नाम आनंदी देवी था। प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था। नवाब राय के नाम से ये उर्दू में भी कहानियाँ लिखा करते थे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण पढ़ाई बीच में छोड़कर इन्हें नौकरी करनी पड़ी थी। परन्तु सन् 1920-21 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से प्रभावित होकर इन्होंने नौकरी छोड़ दी।
बाद में इन्होंने 'हंस' तथा 'जागरण' नामक पत्रिकाओं का सम्पादन किया। प्रेमचंद एक बार मुम्बई के सिनेमा जगत में भी गए थे, पर वहाँ से निराश होकर फिर अपने गाँव लौट आए। प्रेमचंद सादगी पसन्द और आदर्शवादी विचारों के पोषक थे। इनके आसपास सदैव ग्रामीण वातावरण रहा। उसी के फलस्वरूप इन्होंने अपनी रचनाओं में ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं को अद्भुत सफलता के साथ चित्रित किया है।
प्रेमचंद हिन्दी कथा साहित्य में शीर्ष स्थान के अधिकारी हैं। इन्होंने हिन्दी तथा साहित्य को शैशवावस्था से निकालकर परिपक्वता के मार्ग पर अग्रसर किया अपने युग के अन्य कथाकारों को भी उन्होंने प्रेरित प्रभावित किया, जिससे हिन्दी कथा साहित्य में 'प्रेमचंद युग' की एक अलग पहचान बन गई है। हिन्दी कथा साहित्य में प्रेमचंद के महत्व का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है, कि आज भी उनको ही केन्द्र मानकर प्रेमचंद पूर्व प्रेमचंद युगीन और प्रेमचन्दोत्तर युगों में विभाजित कर स्वतंत्रता पूर्व के कथा साहित्य का अध्ययन होता है।
प्रेमचन्द उपन्यास को मानव जीवन का चित्र मानते थे। इसलिए उनकी कहानियों और उपन्यासों में जीवन के बहुविध चित्र मिलते हैं। वे मुख्य रूप से ग्रामीण जीवन के चितेरे हैं, परन्तु 'गोदान' पढ़ने के बाद पता चलता है कि शहरी जीवन का भी इन्हें अच्छा अनुभव था। ग्रामीण जीवन का कोई भी पक्ष, कोई भी कोना प्रेमचंद से नहीं छूटा है।
भोली-भाली ग्रामीण जनता के दुःख दर्द, आशा-निराशा, विश्वास - अंधविश्वास और उस पर होने वाले जमींदारों-महाजनों के अत्याचार तथा शोषण आदि का प्रेमचंद ने बड़ा ही मर्मस्पर्शी विवरण प्रस्तुत किया है। प्रेमचंद पारिवारिक जीवन के भी बड़े कुशल चित्रकार थे। वे वास्तव में परिवार को जीवन का केन्द्र बिन्दु मानते थे। व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से देश और फिर विश्वमानवता- यही प्रेमचंद की कथा यात्रा के प्रमुख आयाम हैं।
प्रेमचंद का दृष्टिकोण उदार और मानवतावादी था। उन्होंने अपनी रचनाओं में निरन्तर शाश्वत् मानव मूल्यों की स्थापना की है। इसीलिए उनका साहित्य देशकाल की सीमाएँ पार कर विदेशों में भी समादृत हुआ है।
प्रेमचंद साहित्य में आदर्श और यथार्थ का अपूर्व समन्वय दिखाई पड़ता है। आदर्श उनका उपजीव्य है, किन्तु यथार्थ का पल्ला भी वे कभी नहीं छोड़ते हैं। उनके इस समन्वय को हिन्दी में 'आदर्शोन्मुख यथार्थवाद' कहा गया है। परन्तु अपने जीवन के अंतिम दिनों में आदर्श के प्रति उनका व्यामोह टूट गया थाऔर वे विशुद्ध यथार्थ के धरातल पर उतर आए थे।
'गोदान' तथा 'कफन' में उनकी यह प्रवृत्ति स्पष्ट दिखाई पड़ती है। प्रेमचंद की सफलता का बहुत बड़ा श्रेय उनकी सहज, चलती और मुहावरेदार भाषा को है। मुहावरे और लोकोक्तियों का जैसा सटीक प्रयोग प्रेमचंद ने किया है, वैसा हिन्दी के किसी अन्य लेखक में नहीं दीख पड़ता है।
उनकी कहानियों में जीवन के हर क्षेत्र, हर वर्ग के पात्रों की जीवन-स्थितियों का अत्यन्त मार्मिक चित्रण है। कहानी का विषय तात्कालिक यथार्थ हो अथवा ऐतिहासिक विषय, उनकी चिन्ता के केन्द्र में सदैव शोषित पीड़ित-प्रताड़ित उपेक्षित मनुष्य की मुक्ति रही है। उनकी कहानियाँ जाति-सम्प्रदाय और धार्मिक पाखण्ड से पूँजीवादी सामंती समाज की हृदयहीनता के विरूद्ध विद्रोह शंखनाद है। -
प्रेमचंद मूलतः ग्राम-जीवन के चित्रकार हैं। ग्राम- जीवन की सरलता और जटिलता, सम्पन्नता और विपन्नता, मूर्खता और धूर्तता, बेबसी और ज्यादती सब कुछ पूरी सच्चाई के साथ इन कहानियों में चित्रित है। ग्रामीण जीवन का ऐसा कोई भी कोना नहीं, जिसे प्रेमचंद न झाँक आए हों। सचमुच, "उनका कथा-साहित्य भारतीय राष्ट्रीय जीवन का एक सटीक काव्य है और तत्कालीन उत्तर भारत का सवाक् चित्र "