प्रसाद डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार के सारण जिला में 3 दिसम्बर, 1884 को हुआ था। कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम० ए० और वकालत की डिग्री प्राप्त करके उन्होंने कॉलेज में अध्यापक का कार्य शुरू किया। फिर, 1916 में उन्होंने पटना में वकालत आरंभ की। लेकिन देशप्रेम की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। वे अपने देशवासियों की दशा से बराबर चिन्तित रहा करते थे और उनकी स्थिति उन्नत करने की योजना बनाते रहते थे। इसी समय चम्पारण सत्याग्रह के सिलसिले में उनकी मुलाकात गाँधीजी से हुई। गाँधीजी के व्यक्तित्व और आदर्श से वे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने गाँधीजी का नेतृत्व स्वीकार कर लिया और देशसेवा में संलग्न हो गये। 1920 में गाँधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन प्रारम्भ हुआ। राजेन्द्र प्रसाद ने वकालत छोड़ दी और राष्ट्रीय संग्राम में कूद पड़े। 1923 में वे कांग्रेस के महामंत्री बने, 1928 में साइमन कमीशन के विरोध और सर्वदल- सम्मेलन में भाग लिया। 1930 में उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन को सफल बनाने की चेष्टा की और 1934 में भूकम्प पीड़ित बिहार की सेवा की। वे आरंभ से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के समर्थक रहे। 1939 में वे कांग्रेस के प्रधान निर्वाचित हुए और 1946 तक उन्होंने इस पद को संभाला। वे संविधान सभा के सभापति भी थे और कुछ खाद्यमंत्री भी। 1952 में वे भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति निर्वाचित हुए और दस साल तक उस पद पर प्रतिष्ठित रहे। अपनी देश सेवा के कारण ही उन्हें 'देशरत्न' कहा जाता है। वे भारतीय संस्कृति एवं आदर्शों के महान प्रतीक थे। उनका जीवन सरलता तथा सादगी का ज्वलन्त उदाहरण है। 1964 में पटना के सदाकत आश्रम में उनकी मृत्यु हो गई।