सरदार बल्लभ भाई पटेल का जन्म 1875 ई० में हुआ था। इनके पिता का नाम झवेर भाई पटेल था। सरदार पटेल ने शिक्षा की समाप्ति के बाद वकालत आरम्भ की और बाद में बैरिस्ट्री पास करने के लिए इंगलैंड गये। 1913 ई० में वे भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े । 1928 ई० में बल्लभ भाई पटेल ने वारदोली का आन्दोलन सफलतापूर्वक चलाया। इसी समय गाँधीजी ने सरदार की उपाधि दी।
1929 ई० में सरदार पहले पहल बन्दी बनाये गए। वे 1931 ई० में कांग्रेस के अध्यक्ष बने और लगातार अगले तीन वर्ष तक रहे।
सरदार पटेल 1935 ई० से 1940 तक कांग्रेस की पार्लियामेंटरी सबकमेटी के सभापति रहे। 1940 ई० में व्यक्तिगत सत्याग्रह के सम्बन्ध में गिरफ्तार कर लिया। पर रोगग्रस्त होने पर इन्हें मुक्त कर दिया।
1942 ई० में 'भारत छोड़ो' आंदोलन के आरम्भ होते ही इन्हें पुनः गिरफ्तार कर लिया गया और 1945 ई० तक वे अहमदनगर के किले में नजरबन्द रखे गये। 1945 ई० में वे अन्तरिम सरकार के सदस्य थे और गृह विभाग इनको सौंपा गया। भारत के स्वराज्य प्राप्ति के पश्चात उन्हें उप-प्रधानमंत्री बनाया गया।
सरदार पटेल की सबसे बड़ी देन है कि भारतीय रियासतों का एकीकरण। रियासत के मामलों को तय करने के लिए रियासत मण्डल बनाया गया। इस मंत्रालय के अध्यक्ष सरदार पटेल स्वयं बने। पटेल ने भारतीय रियासतों को भारतीय संघ में सम्मिलित होने के लिए कहा। उन्होंने कभी प्रेरणा द्वारा और धमकी द्वारा अधिकांश रियासतों को भारतीय संघ में सम्मिलित कर लिया। हैदराबाद में सरदार पटेल को पुलिस कार्यवाही करनी पड़ी। कुछ विद्वान सरकार पटेल को भारत का बिस्मार्क कहते हैं।
सरदार पटेल एक महान संगठनकर्त्ता थे। वे नवभारत निर्माता थे। वे अपने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने को तैयार रहा करते थे।
पटेल हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षपाती थे। 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव पर बोलते हुए सरदार ने कहा था कि वे सत्ता मुस्लिम लोगों को ही सौंपकर भारत छोड़ दें। वास्तव में सरदार पटेल लौह पुरुष थे। उन्होंने एक बार चर्चिल को उत्तर दिया था।
आप लोग यह सोचकर बोलना सीखें कि आप स्वतंत्र भारत से बातचीत कर रहे हैं।' पटेल को अनुशासन बड़ा ही प्रिय था। ऊपर से कठोर और निष्ठुर होते हुए भी उनकी आत्मा पवित्र थी। उन्हें दीन दुखियों से बड़ा प्रेम था। महात्मा गाँधी उन पर बड़ा विश्वास रखते थे।