सन् 1895 ई० में जर्मन वैज्ञानिक रोंजन (Rontgen) ने कैयोड नली से कार्य करते समय देखा कि नली के पास काले कपड़े से ढँकी हुई फोटोग्राफी प्लेट लाने पर वह प्रभावित हो जाती है। जब कैथोड नली को काले कपड़े से ढँककर उसमें कुछ दूरी पर बेरियम प्लेटीनो - साइनाइड का प्रतिदीप्तिशील पर्दा रखा गया तो वह चमकने लगा। रोंजन ने उस प्रतिदीप्त का कारण कैथोड नली में निकलने वाली अज्ञात किरणें बताया। बार-बार प्रयोग दुहराने के पश्चात् वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि जब कैयोड किरणें किसी सुदृढ वस्तु से टकराती है तो उनके संघात से ऐसी किरणें उत्पन्न होती हैं जिनमें ठोस पदार्थों के आर-पार निकल जाने की अद्भुत क्षमता रहती है। इनकी प्रकृति अज्ञात होने के कारण रॉजन ने इनका नाम एक्स-किरणें रखा। इन किरणों को इनके आविष्कारक के नाम पर रॉजन-किरणें (Rontgen rays) भी कहते हैं। रोजन को उनकी इस अद्भुत खोज पर सन् 1901 में भौतिकी का प्रथम नोबेल पुरस्कार (nobel prize) देकर सम्मानित किया गया। एक्स-किरणें साधारण प्रकाश तरंग की भाँति होती है। अंतर केवल यह है कि इन किरणों का तरंग दैर्ध्य (1-3 A:U) प्रकाश किरणों के तरंग दैर्ध्य (3800-7900 A.U) के सापेक्ष अत्यन्त कम होता है। ये किरणें आँख को दिखलाई नहीं पड़ती, लेकिन ये सीधी रेखा में गमन करती हैं।