श्रीमती सरोजिनी नायडू के बारे में वर्णन करें। Shrimati Sarojini Naidu Ke Bare Mein Varnan Karen.
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श्रीमती सरोजिनी नायडू के बारे में वर्णन करें। Shrimati Sarojini Naidu Ke Bare Mein Varnan Karen.

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सरोजिनी का जन्म 13 फरवरी 1868 को हैदराबाद राज्य में डॉ० अधोरनाथ चट्टोपाध्याय के घर हुआ था। उनके माता-पिता ने उन्हें ऊँचे दर्जे की शिक्षा-दीक्षा दी। उन्होंने ग्यारह वर्ष की आयु में ही अंग्रेजी में पद्य-रचना आरम्भ कर दी थी। 1895 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे विलायत गये और तीन वर्ष पश्चात् लौट आयी। कुछ ही दिनों बाद जात-पाँत के समस्त बन्धनों को तोड़कर उन्होंने डॉ० मेजर एम० जी नायडू से विवाह कर लिया। तब से अन्त तक वे भारतीय से नारियों को जागरण-संदेश पहुँचाती रही । वे भारतवर्ष में नारी आन्दोलन की जन्म दात्री थी। इस कार्य को उन्होंने सदैव भारतीय संस्कृति और आदर्श को अपनाया। 1916 में लखनऊ के महत्वपूर्ण कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने पहली बार भाग लिया और उनके प्रथम भाषण ने ही नेताओं तथा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर लिया है। तभी से उनकी गिनती कांग्रेस नेताओं में की जाने लगी। 1921 में वे भारतीय स्त्रियों के मताधिकार - आन्दोलन के सम्बन्ध में इंगलैण्ड गयी। जब वे भारत लौटी तो देश में असहयोग-आन्दोलन जोरों से चल रहा था। बम्बई पहुँचते ही उन्होंने स्वयं को गाँधीजी को आत्मसमर्पण कर दिया।

वे देश सेवा कार्य में संलग्न रही। वे दक्षिण अफ्रिका भी गयी थीं। जहाँ उन्होंने व्याख्यान में जनरल स्मट्स को एक स्पष्ट चेतावनी दी थी कि यदि वहाँ के गोरों का भारतीयों के प्रति दुर्व्यवहार बना रहा तो वे ब्रिटिश साम्राज्य में रहना स्वीकार न करेंगी। अनेक वर्षों तक सरोजिनी द्वारा की गई देश सेवा के कारण इनके प्रति जनता में अपूर्व सम्मान उत्पन्न हो गया और 1925 की कानपुर कांग्रेस में वे अध्यक्ष हुई। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि मैं एक स्त्री ठहरी, इसलिए मेरा कार्यक्रम सीधा-सीधा गृहस्थी से सम्बन्ध रखनेवाला है। मैं तो केवल यह चाहती हूँ कि भारतमाता अपने घर की फिर एकवार स्वामिनी बन जाय, उसके अपार साधनों पर उसी का एकछत्र प्रभुत्व हो। भारतमाता की आज्ञाकारिणी पुत्री के नाते मेरा यह कर्त्तव्य है कि अपनी माता का घर ठीक करुँ और उन शोचनीय झगड़ों का निबटारा कराऊँ जिनके कारण उसका संयुक्त पारिवारिक जीवन जिनमें अनेक जातियाँ और धर्म सम्मिलित है- भंग न हो जाय।"

1930 में महात्मा गाँधी ने नमक- सत्याग्रह चलाया जिसके फलस्वरूप थरसन के नमक- डिपों पर उन्हें पकड़ लिया गया। गाँधीजी की गिरफ्तारी के बाद उस डिपों पर धरना देनेवालों का नेतृत्व सरोजिनी ने ही किया। वे बाद में गिरफ्तार कर ली गयीं। 1942 में कांग्रेस ने भारत छोड़ो का नारा लगाया। तब नेताओं के साथ सरोजिनी को भी जेल में डाल दिया गया, परन्तु दो वर्ष बाद ही उन्हें स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण कारा मुक्त कर दिया गया। उत्तर प्रदेश के गवर्नर पद पर रहते हुए 2, मार्च 1949 को इनकी मृत्यु हो गई।

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