भीमराव अम्बेदकर के बारे में वर्णन करें। Bheemrav Ambedkar Ke Bare Mein Varnan Karen.
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भीमराव अम्बेदकर के बारे में वर्णन करें। Bheemrav Ambedkar Ke Bare Mein Varnan Karen.

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डॉ० भीमराव अम्बेदकर प्रसिद्ध कानूनविद, ओजस्वी वक्ता तथा स्वाधीनता संग्राम के सेनानी थे। ये जीवन पर्यन्त न्याय को स्थापित करने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहे। भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए डॉ० भीम राव अम्बेदकर की अध्यक्षता में एक उपसमिति गठित की गई। फरवरी 1948 में उपसमिति ने प्रारूप तैयार किया। लगभग तीन वर्षों तक विचार-विमर्श के बाद यही ऐतिहासिक दस्तावेज 'स्वाधीन भारत का संविधान' 25 नवम्बर, 1949 को तैयार हुआ जिसे संविधान सभा ने अंगीकृत किया। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गणतंत्रात्मक भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने। इनका भरपूर स्वागत डॉ० भीमराव अम्बेदकर ने भी किया। डॉ. अम्बेदकर के महत्त्वपूर्ण योगदान इस प्रकार सर्वाधिक महत्वपूर्ण था और वर्त्तमान समय में भी महत्वपूर्ण बना हुआ है।

डॉ. अम्बेदकर एक मुखर प्रवक्ता थे और इन्होंने सामाजिक न्याय को स्थापित करने के लिए कानून संसद में गरीब वर्गों, हरिजनों के उत्थान के लिए बनवाया। इन्होंने बतलाया कि संविधान की शक्ति का मुख्य स्त्रोत भारत की आम जनता है। आम जनता को आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक न्याय दिलवाने सम्बन्धी संवैधानिक प्रावधानों को इन्होंने संविधान में रखा जो कि डॉ. अम्बेदकर का एक महत्वपूर्ण देन माना जा सकता है। इनकी मान्यता थी कि सभी नागरिकों के बीच आपसी प्रेम सौहार्ट तथा बंधुत्व की भावना इस प्रकार पनपे कि हजारों वर्ग किलोमीटर में फैले हुए इस देश में प्रत्येक नागरिक जहाँ भी चाहे प्रसन्नतापूर्वक निर्भय होकर घूमे, चाले तथा अपनी आजीविका अर्जित कर आपसी एकता चट्टान की भांति सुदृढ़ हो ताकि भारत का प्रत्येक नागरिक गर्व से कह सके कि वह भारतीय है और संपूर्ण भारत उसका घर है। सौलिक अधिकार दिये जाने का उद्देश्य नागरिकों को समानता स्वतंत्रता समान सुरक्षा प्रदान करना है। मौलिक अधिकारों के अभाव में सामाजिक न्याय को प्राप्त करने का सपना केवल सपना बनकर रह जाता । फलस्वरूप मूल अधिकार सामाजिक न्याय को स्थापित करने के लिए संविधान द्वारा प्रदान किया गया। डॉ० भीम राव अम्बेदकर को निश्चय ही इस आधार पर एक दूरदर्शी भी माना जा सकता है। साथ ही अस्पृश्यता का अन्त किये जाने के प्रबल समर्थक डॉ० अम्बेदकर माने जाते हैं।

एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना सामाजिक न्याय को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम डॉ० अम्बेदकर ने उठाया। प्रस्तावना तक में उच्च आदर्श तथा भावी समाज का चित्र उपस्थित किया है। इस समाज में समान के आम नागरिकों अर्थात् (सवर्ण और अवर्ण) को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और पूजा की स्वतंत्रता तथा प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता प्राप्त होगी। साथ ही समाज में ऊँच-नीच की खाई को पाटा जा सकेगा। • राजनीतिक

आज का भारत इक्कीसवीं सदी का भारत है और आबादी एक अरब पर पहुँच गई है। सामाजिक न्याय के निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति अधिकांशतः की जा चुकी है। इसका ज्वलंत प्रमाण अन्तर्जातीय विवाह प्रथा को समाज द्वारा मान्यता प्रदान किया जाना है। हरिजनों, कमजोर वर्गों को आरक्षण का लाभ प्राप्त हो रहा है। हरिजन के बच्चे सवर्ण बच्चों के साथ शिक्षा पा रहे हैं। सामाजिक न्याय को प्राप्त करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। सामाजिक स्तर पर निर्धनों के लिए आवास सुविधा 'इंदिरा आवास योजना के अन्तर्गत प्रदान की जा रही है। यह सामाजिक न्याय प्राप्त करने की दिशा में एक अत्यंत ही कदम माना जा सकता है।

निष्कर्ष स्वरूप इतना निर्विवाद रूप से सत्य है कि डॉ० भीमराव अम्बेदकर के महत्वपूर्ण योगदान को कदापि भुलाया नहीं जा सकता। इन्हें संवैधानिक आधार स्तम्भ माना जाना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ये प्रसिद्ध कानून विद्, समाज सेवी, सामाजिक न्याय के प्रबल प्रवक्ता, स्वतंत्रता संग्राम का महान योद्धा तथा भारत माँ के शिक्षाविद बेटे थे जिन्होंने जातिवाद, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, छुआछूत, अस्पृश्यता को अन्त करने के लिए जीवन पर्यन्त लड़ते रहे और आजीवन सामाजिक न्याय को उपलब्ध करवाये जाने की दिशा में सतत् प्रयत्नशील रहे। भारत की धरती और भारत की आम जनता डॉ० अम्बेदकर को हमेशा याद रखेगी और इस मसीहे का नाम स्वर्णाक्षरों में इतिहास के पृष्ठों में अंकित होता रहेगा।

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