विशेष आर्थिक क्षेत्र ( Special Economic Zone) का अभिप्राय ऐसे भौगोलिक क्षेत्र से है जो देश में गैर-विशेष आर्थिक क्षेत्र (Non-SEZ) की अपेक्षा विशेषाधिकारों का लाभ प्राप्त कर रहा है। विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना करने की मुख्य प्रेरणा वाणिज्य मंत्रालय से प्राप्त हुई जो निर्यात में वृद्धि को प्रोत्साहन देने के लिए भारतीय एवं विदेशी निगमों को इन क्षेत्रों में निवेश करने के लिए आकर्षित करना चाहता था। इससे पहले स्थापित निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों (Export Processing Zones) को भी अब विशेष आर्थिक क्षेत्रों में परिवर्तित किया जा रहा है। इस प्रकार कांडला एवं सूरत, गुजरात, सांताक्रुज, मुम्बई (महाराष्ट्र ), फाल्टा (पश्चिम बंगाल), चैन्नई (तमिलनाडु), विशाखापतनम् (आंध्र प्रदेश) और नौएडा (उत्तर प्रदेश) में स्थित निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों को सरकार ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों में परिवर्तित कर दिया है।
विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना के लिए मुख्य तर्क कुछ चुने हुए क्षेत्रों में संसाधनों के संकेन्द्रण द्वारा निर्यात को बढ़ावा देना है। यह नीति अप्रैल 2000 में चालू की गयी ताकि निर्यात के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से प्रतिस्पर्धी और असुविधा मुक्त वातावरण कायम किया जा सकें। इन इकाइयों की स्थापना विनिर्मित वस्तुओं (Manufactured goods) या सेवाओं को उपलब्ध कराने के लिए की जा सकती है। विशेष आर्थिक क्षेत्र में स्थापित इकाई को शुद्ध मुद्रा अर्जक (Net foreign exchange earner) का कार्य करना होगा, परन्तु इस पर ऐसी कोई शर्त लगायी नहीं जाएगी कि उसे अपने कुछ उत्पादन का विशिष्ट अनुपात निर्यात करना होगा।
विशेष आर्थिक क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र, गैर-सरकारी क्षेत्र या संयुक्त क्षेत्र में या किसी राज्य सरकार के साथ सहयोग में निगमों द्वारा कायम किए जा सकते हैं।
विशेष आर्थिक क्षेत्र विकास के शुल्क मुक्त एन्कलेव हैं जिन्हें व्यापार, शुल्कों एवं टैरिफों के लिए विदेशी क्षेत्र समझा जाता है। यह नीति इन क्षेत्रों के विकासकों (Developers) जो इस इलाकों में अपनी इकाइयां स्थापित करेंगे बहुत से राजकोषीय एवं विनियामक प्रोत्साहन प्रदान करती है।
विशेष आर्थिक क्षेत्रों में निगमों को पहले पांच वर्षों के लिए अपने लाभ का आयकर अदा नहीं करना होगा और इसके पश्चात् दो वर्षों के लिए केवल 50 प्रतिशत कर देना होगा। कंवल 50 प्रतिशत कर देने की राहत का अगले तीन वर्षों के लिए विस्तार किया जा सकता है, यदि निगम अपने लाभ का आधा भाग पुनः निवेश के लिए प्रयुक्त करता है। आयकर लाभ के अतिरिक्त, विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाइयों को बहुत से अन्य करों एवं शुल्कों से भी छूट होगी, इनमें शामिल है। सीमा- शुल्क (Customs), उत्पाद शुल्क (Excise), सेवा कर, मूल्य वृद्धि कर (Value added tax), लाभांश कर, आदि।
विशेष आर्थिक क्षेत्रों के विकासकों के लिए सभी कच्चे मालों, सिमेंट से इस्पात तक - पर कर/शुल्क से छूट होगी। विकास के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए आयात पर किसी भी सीमा तक शुल्क से छूट होगी। -
विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए भूमि के बड़े भांग सरकार द्वारा अधिग्रहण कर निगमों अथवा विकासकों को उपलब्ध कराए जाएंगे। एक मूल शर्त यह होगी कि विशेष आर्थिक क्षेत्र का 25 प्रतिशत क्षेत्र निर्यात से संबंधित क्रियाओं के लिए इस्तेमाल किया जाए और शेष 75 प्रतिशत क्षेत्र का प्रयोग आर्थिक एवं सामाजिक आधारसंरचना (Infrastructure ) के लिए इस्तेमाल किया जाए। विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए उपलब्ध लाभों एवं रियायतों की उपलब्धि समग्र क्षेत्र के लिए होगी। अधिकृत क्रियाओं की सूची में शामिल हैं, सड़कें, मकान, कन्वेशन सेंटर, कैफेटेरिया एवं रेस्तोरान, वातानुकूलन, टेलीसंचार एवं अन्य संचार सुविधाएं और मनोरंजन केन्द्र।