वीर कुँवर सिंह के बारे में वर्णन करें। Veer Kunwar Singh Ke Bare Mein Varnan Karen.
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वीर कुँवर सिंह के बारे में वर्णन करें। Veer Kunwar Singh Ke Bare Mein Varnan Karen.

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वीर कुँवर सिंह स्वतंत्रता आन्दोलन में बिहार के सिपाही विद्रोह के अग्रणी थे। 1845-1846 ई० के षड्यंत्र में भी इनका हाथ था। ये एक प्रभावशाली जमींदार थे और लोगों के बीच काफी लोकप्रिय थे। 27 जुलाई 1857 को कुँवर सिंह ने आरा जाकर अंग्रेजों को घेर लिया और उनसे लोहा लिया।

कुँवर सिंह न केवल बिहार वरन् अन्य राज्यों के क्रांतिकारियों के सम्पर्क में थे। बाद में यह सैनिक विद्रोह राष्ट्रीय विद्रोह में परिवर्तित हो गया। 1858 में अंग्रेजी सेना ने उनपर आक्रमण किया किन्तु अंग्रेज पराजित हो गये और आजमगढ़ पर कुँवर सिंह का नियंत्रण हो गया। अंग्रेज कुँवर सिंह के व्यक्तित्व, योग्यता, चातुर्य एवं साहस से आश्चर्यचकित थे। छापामार युद्ध प्रणाली में वे सिद्धहस्त थे। उनमें अवसर पहचानने की क्षमता थी। 1858 में अंग्रेजी सेना से सामना करते हुये उनका एक हाथ खो गया। उसी रात में गंगा पार कर जगदीशपुर पहुंच गये। जगदीश पुर में भी अंग्रेजी सेना ने उनपर हमला किया लेकिन उन्होंने उसे पराजित किया। इसी के तीन दिन बाद कुँवर सिंह की मृत्यु हो गई ।

1857 की क्रांति के दौरान विद्रोही सिपाहियों ने जगदीशपुर पहुँचकर वीर बाबू कुँवर सिंह से क्रांतिकारी का नेतृत्व करने का अनुरोध किया। बाबू वीर कुंवर सिंह ने इसे स्वीकार किया तब कुंवर सिंह की आयु 80 वर्ष थी। नाना साहेब से उनकी खत - कितावत रहने के कारण इन्हें भी यहाँ कैद करने की चाल चली थी। अतः उसने उन्हें अपना मेहमान बनने के लिए आमंत्रित किया था। परन्तु बाबू बीमारी का बहाना बनाकर उसे टाल दिया था। परन्तु जब सिपाही उनके पास पहुँचे तो वे बूढ़े से जवान हो गए, बीमार से स्वस्थ हो गए और विद्रोहियों का नेता बनना स्वीकार कर लिया। कई बार वीर कुंवर सिंह और अंग्रेजी सेना के बीच भिड़ंत हुई। आजमगढ़ में अंग्रेजों को शिकस्त खानी पड़ी। कुंवर सिंह ने वलिया से 7 मील दूर शिवपुर घाट से नावों द्वारा गंगा पार की किन्तु यहीं पर एक दुर्घटना घटी। गंगा पार कुंवर सिंह हाथी पर बैठकर रवाना हो रहे थे। उसी समय उनके सर पर तने छत्र को देखकर डगलस ने गोली चलाया। भुजा का मांस उड़ जाने से हाथ काटना आवश्यक हो गया। 80 वर्षीय वीर पुरूष ने दूसरे हाथ से तलवार निकाली और कुहनी से नीचे हाथ काटकर गंगा को भेट चढ़ा दिया। 22 अप्रैल 1858 को उन्होंने जगदीशपुर पर कब्जा कर लिया। परन्तु हाथ कटने का घाव इतना घातक हो गया कि 26 अप्रैल 1858 को इस वयोवृद्ध वीर सेनानी ने स्वतंत्र जगदीशपुर में ही अंतिम सांस ली और उनकी मृत्यु हो गई।

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