स्व० इन्दिरा गाँधी के बारे मे वर्णन करें। Swarg Indra Gandhi Ke Bare Me Varnan Karen.
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स्व० इन्दिरा गाँधी के बारे मे वर्णन करें। Swarg Indra Gandhi Ke Bare Me Varnan Karen.

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इन्दिरा गाँधी का जन्म इलाहावाद के 'आनन्द भवन' में 9 नवम्बर 1917 को हुआ था। यही वह वर्ष है जब रूस में क्रांति हुई थी और संसार में एक नवीन जीवन पद्धति का जन्म हुआ था। यह वह समय था, जब ब्रिटिश साम्राज्य अपने पूर्ण यौवन के साथ भारत में चमक रहा था। देशभक्ति की बातें देशद्रोह समझी जाती थीं। फिर भी, देश के सपूत देश को आजाद करने में लगे हुए थे। इसीलिए सरोजिनी नायडू ने इन्हें 'क्रांति की सन्तान' कहा।

अपनी शैशवावस्था में इन्दिरा जी अपने चारों ओर स्वतंत्रता की लड़ाई में व्यस्त वातावरण को ही देखती रहीं। एक नये भारत के नर्माण की चर्चा उनके बचपन का अंग रही है। राजनीति अन्तर्दृष्टि उन्हें अपने दादा पं० मोतीलाल नेहरु, पिता पं० जवाहरलाल नेहरु और माता श्रीमती कमला नेहरु से मिला। उन सबका प्रभाव प्रियदर्शिनी इन्दिरा के बाल मन पर पड़ा । इसी सांचे में उनका जीवन ढला।

इनकी आरम्भिक शिक्षा स्विटजरलैंड में हुई। इसके बाद अध्ययन के लिए शाँति निकेतन आ गयीं। इसके पश्चात् इन्होंने आक्सफोर्ड में शिक्षा ग्रहण की। जीवन की वास्तविक शिक्षा इन्हें अपने पिता पं० नेहरु से मिली। साथ रहने पर तो वे अपने एकमात्र संतान, अपनी प्रिय पुत्री को बहुत कुछ बताते ही रहते थे, जेल जाने पर भी वे इन्दिरा जी की शिक्षा पर ध्यान रखते थे। जेल से इन्होंने इन्दिराजी को अनेक बहुमूल्य पत्र लिखे। ये पत्र पिता के पत्र पुत्री के नाम' से प्रकाशित हुए। नेहरुजी समय-समय पर इन्हें अच्छी पुस्तकें भी पढ़ने के लिए देते रहते थे।

नेहरुजी के साथ इन्दिराजी ने काफी भ्रमण किया देश का ही नहीं विदेश का भी। नेहरुजी के साथ वे विदेश ही अधिक गयीं। इस तरह से विख्यात व्यक्तियों के सम्पर्क में आई। इनके सब बातों का योगदान उनके व्यापक और विशाल व्यक्तित्व के निर्माण में रहा ।

इन्दिराजी को विरासत में एक महान परिवार की ऊँची परम्परा के साथ देश सेवा भी प्राप्त हुई। परिवार की पारम्परिक लीक से वे अलग नहीं हुई।

1955 से इन्दिरा गाँधी के राजनीति जीवन का विकास आरम्भ होता है। इसी वर्ष इन्हें काँग्रेस की कार्य समिति में सम्मिलित किया गया। 1959 में इन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस की अध्यक्षता का भार सम्भाला ये प्रथम भारतीय महिला थीं जिन्होंने देश के कर्णधारों की माँग पर अपने समस्त स्वर्ण आभूषण दे डाले थे। 1965 के पाकिस्तानी आक्रमण में इन्होंने एक समर्पित नेता का रूप दर्शाया। जवानों के उत्साहवर्द्धन के लिए ये अन्तिम मोर्चों तक गई। उस समय वे सूचना और प्रसारण मंत्री थीं।

1971 के पाकिस्तान युद्ध में श्रीमती गाँधी को सफलता प्राप्त हुई । बंगलादेश के निर्माण का श्रेय इन्हें ही है। किन्तु बंगलादेश से आये शरणार्थियों की समस्या देश की आर्थिक व्यवस्था को नष्ट कर देने के लिए काफी थी । यद्यपि इसमें सुधार हुए किन्तु इस रोग से पूर्णतया मुक्ति नहीं मिली।

दूसरी ओर आन्तरिक समस्याएँ भी बढ़ती गई। राजनीतिक हित साधन के लिए कतिपय जातियों ने श्रीमती गाँधी को ब्लैकमेल करना चाहा, बोट का वायदा तो किया किन्तु कुछ शर्तों के साथ। साथ ही भ्रष्टाचार और अनाचार की वृद्धि अलग समस्या थी। 1974 में बिहार में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जन आंदोलन आरम्भ हो गया। इन सब के कारण इन्दिरा गाँधी को आपात स्थिति की घोषणा करनी पड़ी। इस आपातकालीन स्थिति में सरकारी कर्मचारियों ने शोषण और अत्याचार का वीभत्स रूप प्रकट कर दिया। अधिकतर नेता श्रीमती गाँधी के पुत्र संजय गाँधी के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण क्षुब्ध हो उठे। फलतः एक बार और काँग्रेस में विघटन हुआ। उधर विरोधी नेता एक जुट होकर इन्दिराजी के विरोध में खड़े हुए।

पहली बार इन्दिराजी को राजनीतिक झटका लगा। उनकी ही नहीं उनकी पार्टी की भी चुनाव में करारी हार हुई। किन्तु शायद इन्दिराजी के भविष्य के लिए अच्छा हुआ। वे फिर से संगठन में जुट गई। राजनीतिक विद्वेष से प्रेरित जाँचों से वे घबरायी नहीं। स्थिति बदली। इन्दिराजी बहुमत से फिर विजयी हुई।

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