1-3 जून, 2003 को फ्रांस के सीमावर्ती शहर 'इविया' में विश्व के आठ सर्वाधिक शक्तिशाली और सम्पन्न राष्ट्रों के संगठन 'जी-8' का वार्षिक शिखर सम्मेलन विरोध प्रदर्शनां के बीच आयोजित हुआ। फ्रांस की मेजबानी और अध्यक्षता में हुए इस शिखर सम्मेलन में इसकी
सभी 8 सदस्य देशों, सं० रा० अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा, इटली, जापान, रूस तथा फ्रांस के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया। भारत ने भी इस सम्मेलन में आमंत्रित सदस्य के रूप में भाग लिया। यह सम्मेलन इराक पर आक्रमण के मुद्दे पर सदस्य देशों के आपसी तनावों को घटाने में काफी हंद तक सफल रहा। हालांकि इस शिखर सम्मेलन का असली उद्देश्य धनी एवं शक्तिशाली देशों के इस समूह में इराक युद्ध के दौरान इंगलैंड- सं० रा० अमेरिका तथा फ्रेंच - जर्मन धुरियों के बीच बढ़े मतभेदों को कम करना व मेल-मिलाप की प्रक्रिया को तेज करना ही था। लेकिन इस अवसर को और प्रचार देने के उद्देश्य से भारत, ब्राजील, चीन, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका सहित 20 विकासशील देशों के राष्ट्राध्यक्षों को भी सम्मेलन में शिरकत करने के लिए आमंत्रित किया गया था। इन विकासशील देशों को फ्रांस के राष्ट्रपति जैक शिराक की खास पहल पर बुलाया गया। इसके लिए तर्क यह दिया गया कि इन विकासशील देशों को विश्व के सम्मुख खड़ी प्रमुख चुनौतियों पर पारस्परिक विचार-विनिमय के लिए इवियां आने का निमंत्रण औपचारिकता के सिवा और कुछ नहीं लगा, क्योंकि आयोजकों ने यह स्पष्ट करने में जरा भी देर नहीं लगायी कि इन 20 देशों को जी-8 का सदस्य बनाने की कोई योजना नहीं है। हालांकि चीन को लेकर दिलचस्पी जरूर दिखी। यह दिलचस्पी स्वाभाविक ही है, क्योंकि चीन का औद्योगिक उत्पादन इटली और कनाडा के मुकाबले कहीं बड़ा है और रूस की तुलना में उसकी अर्थव्यवस्था बड़ी है।
जी-8 का भारत सदस्य नहीं है, फिर भी आमंत्रित सदस्य के रूप में वार्षिक शिखर सम्मेलन में भारत को शामिल किया गया। विश्व के सर्वाधिक धनी देशों के इस संगठन से भारत का कोई सीधा रिश्ता नहीं रहा है हालांकि सदस्य देशों से व्यक्तिगत संबंध है, पर पिछले कुछ वर्षों से भारतीय अर्थव्यवस्था में आ रही मजबूती और यहाँ के विशाल बाजार ( चीन के बाद विश्व का दूसरा सर्वाधिक आबादी वाला देश) के मद्देनजर अब विश्व की किसी भी शक्ति द्वारा इसे अनदेखा करना नामुमकिन है, यही कारण है कि जी-8 के महत्वपूर्ण सदस्य फ्रांस के राष्ट्रपति जैक शिराक ने विशेष दिलचस्पी लेकर भारत तथा अन्य विकासशील देशों को इवियां सम्मेलन में आमंत्रित किया। हालांकि इस निर्णय के लिए उन्होंने अन्य सदस्यों की भी सहमति अवश्य ली होगी। जी-8 की बैठक में आमंत्रित अतिथि के रूप में भाग लेने वाले भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस अवसर पर उम्मीद जताई कि विश्व में एक नया आर्थिक मंच शक्ल ले रहा है, जिसमें विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों की समुचित भूमिका होगी ताकि विश्व को सही प्रतिनिधि मिल सके। इस अवसर पर दिये गये अपने वक्तव्य में वाजपेयी ने अमीर देशों से विकासशील देशों को विकास के लिए धन उपलब्ध कराये जाने का आह्वान किया। साथ ही, उन्होंने चेतावनी भरे शब्दों में कहा कि यदि वे इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए शीघ्र ही कदम नहीं उठाते हैं तो अधिकतर विकासशील देशों के लिए व्यापार उदारीकरण अथवा पर्यावरण मुद्दों पर राजनैतिक समर्थन प्राप्त करना मुश्किल हो जायेगा।
सम्मेलन के दौरान वाजपेयी ने अपने भाषण में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी सामने रखा। उन्होंने विकासशील देशों को निर्यात पर शुल्क तथा गैर - शुल्क संबंधी अड़चनें समाप्त करने का विकसित देशों से आग्रह करते हुए अंतर्राष्ट्रीय पूंजी प्रवाह पर लघु शुल्क (न्यूनतम टैक्स) लगाने का प्रस्ताव किया, जिससे 'विश्व विकास कोष' गठित किया जा सके। इस कोष में जमा होने वाली रकम का इस्तेमाल गरीब तथा विकासशील देशों की सहायता के लिए किया जाय। वाजपेयी के अनुसार हालांकि इस प्रारंभिक विचार के मार्ग में कई तकनीकी समस्यायें हैं, फिर भी इससे होने वाले लाभों को देखते हुए इसे लागू करने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। वस्तुतः मुद्रा व्यापार व उसके प्रवाह पर कर लगाने का विचार कोई नया नहीं है। सर्वप्रथम 1978 में नोवेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री 'जेम्स टोबिन' ने मुद्रा बाजार में होने वाले सभी तरह के लेन-देन पर एक न्यूनतम टैक्स लगाने का सुझाव दिया था, जिससे कि मुद्रा बाजार में गैर-जरूरी सट्टेबाजी पर रोक लगाने एवं स्थिरता कायम करने के अलावा निर्धन देशों की सहायता के लिए धन जुटाया जा सके। इसीलिए इस टैक्स को 'टोबिन टैक्स' के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन लगता है कि वाजपेयी ने बिना किसी तैयारी के शगूफा छोड़ने की कला में महारत प्राप्त कर ली है, क्योंकि उन्होंने इस मुद्दे को पहले कहीं भी न तो चर्चा या बहस चलायी और न ही सहमति बनाने का ही प्रयास किया।
जी-8 के आठ समृद्ध देश विकासशील तथा गरीब देशों की सहायता के नाम पर स्वयं को और समृद्ध करने में लगे हुए हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति की तमाम कोशिशों के बावजूद सं० रा० अमेरिका- ब्रिटेन गुट इवियां सम्मेलन पर हावी रहा। शिराक ने दावा किया था कि वे विश्व में बहुध्रुवीय दृष्टि को स्थापित करेंगे यानि अमेरिकी दादागिरी को रोकेंगे, पर ऐसा हो न सका। बुश अपने लाव-लश्कर के साथ मात्र एक दिन के लिए आये और विकास के मुद्दों के बदले सुरक्षा . एवं आतंकवाद संबंधी अपने एजेंडे को प्राथमिकता दिलाकर चले गये। सम्मेलन में विकास और गरीबी को लेकर कोई ठोस कार्यक्रम नहीं अपनाया गया। कुल मिलाकर सम्मेलन से यह निष्कर्ष निकलता फिर दिखा कि आठ समृद्ध देशों का संगठन जी - 8 अपने वर्चस्व को लगातार बढ़ाने में लगा है। भूमंडलीकरण का ढोल पीटने के बावजूद विकसित देश विकासशील देशों पर इस बात के लिए दबाव डाल रहे हैं कि वे कृषि क्षेत्र में दी जा रही सब्सिडी को समाप्त करें, वहीं विकसित देश स्वयं अपने देश के किसानों को अत्यधिक सब्सिडी प्रदान कर रहे हैं। विकसित देश स्वयं तो संहारक हथियार बना रहे हैं, पर विकासशील देशों द्वारा ऐसा करने पर उन्हें धमका रहे हैं। लगता है कि उदारीकरण और भूमंडलीकरण की आड़ में केवल अपना वर्चस्व स्थापित करना ही इस समूह का ध्येय बन गया है।