बिहार में बाढ़
बाढ़ को प्राय: प्राकृतिक तथा मानवकृत दशाओं का प्रतिफल मानते हैं। प्राकृतिक परिस्थितियों के अन्तर्गत अत्यधिक वर्षा अंथवा बादल का फटना, नदियों का अत्यधिक वक्राकार मार्ग, नदी के मार्ग में सिल्ट के जमाव से नदी के तली का ऊपर उठना, नदियों के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करना इत्यादि है। मानवकृत दशाओं के अन्तर्गत पुराने मार्ग को कृषि क्षेत्र में बदलना, गृह निर्माण करना, पुल का निर्माण, बाँध का निर्माण, वनों का ह्रास इत्यादि आते हैं। कभी-कभी लगातार कई दिनों तक औसत से अधिक वर्षा होने पर नदियों के मार्ग में जल भर जाता है तथा पहाड़ी क्षेत्र यानी जल अधिग्रहण क्षेत्र में अधिक वर्षा हो जाने पर नदियों में क्षमता से अधिक पानी का जमाव हो जाता है और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। खासकर शुष्क तथा अर्द्ध शुष्क प्रदेशों में जहाँ प्रवाह प्रणाली अच्छी नहीं होती है वहाँ क्षणिक तेज गति का बाढ़ (Flash flood) विकसित हो जाता है। ठीक इसी तरह अधिक वक्राकार नदी मार्ग में पानी का निकास सामान्य से कम होता है। कभी-कभी नदियों में ऊपरी भाग के भूमि स्खलन से अथवा भूकम्प से मार्ग अवरूद्ध हो जाता है अथवा बाँध या तटबन्ध टूटने से भी अत्यधिक पानी का दबाव पड़ने पर बांध टूट जाता है और अचानक भयावह बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण स्वरूप 1984 एवं 2008 ई० में कोसी नदी के पूर्वी तटबन्ध के टूटने से भयावह स्थिति उत्पन्न हो गयी। इस क्षेत्र में बाढ़ का दूसरा कारण ढ़ाल की कमी है। यहाँ औसत ढ़ाल 7'/, से.मी. प्रतिकि.मी. है। कुछ क्षेत्रों में 11/, से.मी. प्रति वर्ग कि.मी. से भी कम ढ़ाल है। ऐसे क्षेत्र में नगण्य जल प्रवाह है। अधिकांश तालाब शिल्ट से भरा हुआ है तथा खेती के क्षेत्र में परिणत हो गया ।इस निम्न भूमि में धान की खेती करते हैं और अगल-बगल के खेतों में सिंचाई भी करते हैं। परन्तु शिल्ट के जमाव होने तालाब, नाला, आहर, पइन आदि में बरसात के अतिरिक्त पानी को रखने की क्षमता खत्म हो गयी है। साथ-साथ लोग आहर एवं पइन को खेतों में मिला लिया गया है जिससे पानी जमा नहीं हो पाता है और भूमिगत जल भी रिचार्ज नहीं हो पाता है जिसके फलस्वरूप जल स्तर भी नीचे चला जा रहा है।बिहार की नदियाँ खासकर कोसी, कमला, भुतही, बलान, बागमती, बूढ़ी गंडक, सोन, पुनपुन आदि मार्ग परिवर्तन के लिए नामी हैं। कोसी नदी पूरब से पश्चिम लगभग148 कि०मी० स्थानान्तरित हुई है। ठीक इसी तरह कमला नदी के कई मार्ग हैं। वस्तुतः उत्तर बिहार की नदियों में अनेक मार्ग हैं एवं पुराने मार्ग वर्षा ऋतु में सजग हो जाते हैं तथा अत्यधिक वर्षा होने पर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर देती है। दक्षिण बिहार में भी सोन, पुनपुन, फलगु आदि नदियों का मार्ग परिवर्तन हुआ है।