निर्वनीकरण या पेड़ों की कटाई से उत्पन्न संकट
आधुनिक समय में अनेक प्राकृतिक आपदाओं के फलस्वरूप एक तरफ जहाँ वनों का क्षेत्रफल की दिनानुदिन कम होता जा रहा है वहीं दूसरी ओर बढ़ती आबादी और उनकी विविध प्रकार की आवश्यकता पूर्ति हेतु निर्ममतापूर्वक अंधाधुंध पेड़ों की कटाई की जा रही है। विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु विभिन्न स्रोतों से जंगलों की कटाई की जाती है और भूमि का निर्वनीकरण किया जा रहा है। इस प्रकार पेड़ों की असीमित कटाई करते रहने से इसका परिणाम सबों के लिए विनाशकारी होगा। पेड़ों की असीमित कटाई से उत्पन्न कुछ प्रमुख संकटों की ओर ध्यान देना आवश्यक होगा, जो निम्नलिखित हैं
1. जंगलों या पेड़ों की कटाई से जंगल का क्षेत्रफल कम होगा। जंगल का क्षेत्रफल कम होने से जंगली जन्तुओं से आश्रय स्थल में कमी हो जाएगी और पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) पर उसका प्रतिकूल असर पड़ेगा।
2. पारिस्थितिक तंत्र में पेड़-पौधे ही उत्पादक हैं। अगर उत्पादक की संख्या कम होती है तो उपभोक्ता वर्ग को भोज्य पदार्थ की भी कमी होगी और धीरे-धीरे उसका विनाश होता जाएगा।
3. वायुमण्डल में ऑक्सीजन का एकमात्र स्रोत पेड़-पौधे ही हैं। पेड़-पौधों की कमी से वायुमण्डल में ऑक्सीजन की कमी होगी और जीवधारियों के लिए ऑक्सीजन का अभाव होने के साथ-साथ पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ जाएगा । ( बिगड़ गया है), प्रदूषण अनियंत्रित हो जाएगा (हो गया है) और जीवधारियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा ( पड़ गया है)।
4. ऑक्सीजन की कमी होने के साथ-साथ वायुमण्डल में CO, CO2, SO2, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि विषैली गैसों की मात्रा अत्यधिक हो जाएगी ( हो गयी है) क्योंकि पेड़-पौधे वायुमण्डल से CO2 लेकर प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन निर्माण करते हैं तथा अन्य गैसों को अवशोषित कर लेते हैं जिससे पर्यावरण का संतुलन कायम रहता है।
5. वायुमण्डलीय प्रदूषण को संतुलित तथा नियंत्रित करने का काम मात्र पेड़-पौधे ही करते हैं। पेड़ों की कटाई से प्रदूषण अनियंत्रित हो जाएगा ( हो गया है ) ।
6. पेड़-पौधे भूमिक्षरण या कटाव को रोक कर रखते हैं। उनकी कटाई से भूमि कटाव तथा चट्टानों का खिसकना बढ़ जाएगा।
7. पेड़ों की कटाई से वर्षा अनियमित, असमय और कम हो जाएगी। बाढ़-सुखाड़ असमय और अधिक होंगे।
8. धरती पर ताप तथा शीत की मात्रा असहनीय हो जाएगी। (हो रही है।)
9. अत्यधिक ताप के कारण ध्रुव प्रदेशों की बर्फीली चट्टानें पिघल जाएगी और वह पानी समुद्र में आ जाएगा। समुद्र की सतह बढ़ेगी जिसके फलस्वरूप निचले हिस्से का भूमिखण्ड सहित सम्पूर्ण आबादी जलमग्न हो जाएगी।
10. पृथ्वी पर पोषक तत्वों के चक्र (Mineral cycles), जैसे-कैल्शियम, फॉस्फोरस, सल्फर आदि तथा गैसीय चक्रों में नाइट्रोजन, कार्बन आदि चक्र अनियमित एवं असंतुलित हो जायेंगे, जिसका प्रतिकूल असर सभी जीवधारियों के लिए विनाशकारी होगा।
11. पेड़ों की कमी से वर्षा कम तथा अनियमित हो जाएगी ( हो गयी है) जिससे धरती के ऊपर तथा धरती के अन्दर पानी की कमी हो जाएगी ( हो गयी है)। वर्त्तमान में अपने देश में भूमिगत जल (Underground water) की कमी हो रही है। यह सरकार तथा सभी जीवधारियों के लिए गम्भीर समस्या हो गयी है। पीने के लिए, सिंचाई के लिए पानी चाहिए और पानी की कमी हो जाने से लोग कैसे बचेंगे यह चिन्तनीय हो गया है। वैज्ञानिक तथा पर्यावरणविद इस दिशा में कार्यरत हैं कि पानी की कमी न होने पाये। पानी तो चक्रीय क्रम से पृथ्वी पर आता है जिसे जल-चक्र (Water cycle) कहते हैं। प्रदूषण के कारण ही जल-चक्र असंतुलित हो गया है जिससे पृथ्वी पर उसकी कमी हो रही है।
12. पेड़ों की कटाई से मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरा शक्ति (Humus) की घोर कमी हो जाएगी (हो रही है) और जमीन धीरे-धीरे बंजर होती जाएगी। अन्ततः जमीन मरुभूमि में परिवर्त्तित हो जाएगी। पेड़ों की कटाई का सीधा अर्थ है जमीन को मरुभूमि बनाना । पारिस्थितिक भाषा में कहें तो निर्वनीकरण (Deforestation) ही मरुभूमिकरण (Desertification) है। अगर जमीन की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाएगी और जमीन मरुभूमि हो जाएगी तो जीवधारी पशु-पक्षी, मनुष्य एवं अन्य जीव क्या खायेंगे ? कैसे जियेंगे ? -
उपर्युक्त सभी संकट (Hazards) पेड़ों की कटाई से ही उत्पन्न होते हैं। अतः इसका एकमात्र साधन पेड़ों की कटाई बन्द करना तथा उसकी रक्षा करना। पेड़ों की कटाई पर सरकारी तथा सामाजिक प्रतिबंध हो। इसके लिए कठोर दण्ड दिया जाय। हम सभी को चाहिए कि पेड़ों की कटाई को रोकें, लगे पेड़ों की रक्षा करें तथा नये पेड़ लगाएँ ।