संपोषित या धारणीय विकास पर टिप्पणी लिखें। Santosh Ya Dhaarniya Vikas Per Tippani Likhen.
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संपोषित या धारणीय विकास पर टिप्पणी लिखें। Santosh Ya Dhaarniya Vikas Per Tippani Likhen.

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संपोषित या धारणीय विकस

 'धारणीय विकास' की अवधारण सर्वप्रथम अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ द्वारा वर्ष 1980 में प्रस्तुत की गई। जैसे-जैसे पर्यावरण संबंधी मामलों में आम जनता की रूचि बढ़ती गई वैसे-वैसे पृथ्वी संरक्षण की विचारधारा बलवती होती गई। इससे विकास संबंधी बेहतर नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता प्राप्त हुई जिससे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को भी नियंत्रित किया जा सकता है। वर्ष 1987 में ब्रंटलैंड आयोग द्वारा धारणीय विकास को निम्नवत परिभाषित किया गयाअपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में भावी पीढ़ियों की क्षमता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किए जाने वाले विकास कार्यक्रम को धारणीय विकास की संज्ञा दी जा सकती है। " पर प्राकृतिक संसाधनों को धारणीय विकास इस बात का पक्षधर है कि किसी एक स्थान हुई हानि की प्रतिपूर्ति किसी अन्य स्थान पर कर दी जाए।

धारणीय विकास की अवधारणा प्राकृतिक संसाधनों को उचित महत्व प्रदान करने और उन्हें संरक्षण प्रदान करने की आवश्यकता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने में सहायक सिद्ध हुई है।

यदि विकास परियोजनाओं से होने वाले आर्थिक लाभ को देखा जाए तो अगली शताब्दी में विश्व समृद्धि की ऊँचाई पर खड़ा मिलेगा किंतु यदि भावी पीढ़ियों के स्वास्थ्य और उनके सुखी जीवन की बात करें तो हम कह सकते हैं कि पर्यावरण निम्नीकरण के दुष्परिणामों के कारण उनका जीवन कठिनाइयों से घिरा होगा।

अतः हमारा यह दायित्व है कि हम इस बात पर उचित सोच विचार करें कि

1. हम अपने बच्चों को अपनी विरासत के रूप में किस प्रकार का पर्यावरण सौंपना चाहते हैं? 

2. विकास का स्वरूप और लक्ष्य क्या होना चाहिए?

धारणीय विकास ऐसा विकास है जो स्थायी होता है। जैसा कि आप जानते हैं, प्राकृतिक संसाधनों की माँग में भारी वृद्धि हुई है जिसके निम्नलिखित दो कारण हैं

1. जनसंख्या वृद्धि; लोगों की खपत क्षमता में वृद्धि हुई है। उपर्युक्त कारणों से प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हुआ है जिसके कारण उनका क्षीणन और पर्यावरण का निम्नीकरण हुआ है। उदाहरण के लिए, मृदा के अति उपयोग से मृदा की उर्वरता में कमी आती है। वननाशन के परिणामस्वरूप जलवायु असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होती है और हरा-भरा क्षेत्र रेगिस्तान में बदलने लगता है। संरक्षण के अभाव में तथा शिकार और हत्या कर दिए जाने के कारण पौधों और जंतुओं की अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं। हम अपने लालच के वशीभूत होकर जैवविविधता को नष्ट कर रहे हैं तथा रासायनिक कचरों को विसर्जित करके जल, वायु और मृदा प्रदूषण में वृद्धि कर रहे हैं। में

2. आर्थिक विकास जिसके कारण

इन सभी परिणामों को देखते हुए हमें यह विश्वास होने लगा है कि हालाँकि आज हम आर्थिक विकास के लाभ प्राप्त कर रहे हैं किन्तु साथ ही हम भावी पीढ़ियों के लिए कष्ट का कारण भी बन रहे हैं। धारणीय विकास के संबंध में विश्व पर्यावरण और विकास आयोग द्वारा अनुमोदित सिद्धांत कि "वर्तमान पीढ़ी को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके क्रियाकलापों से भावी पीढ़ी कीआवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े' को व्यापक स्वीकृति प्राप्त हुई है।

धारणीय विकास के कुछ सिद्धांत :

1. सभी जीवों का सम्मान और संरक्षण करें ताकि प्रकृति में संतुलन की स्थिति बनी रहे। 2. प्राकृतिक संसाधनों के क्षीणन को न्यूनतम करें।

3. मानव कल्याण और उसके सुखी जीवन जैसे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए विकास के लक्ष्यों को पुनर्निर्धारित करें।

4. पर्यावरण के संबंध में अपनी सोच और व्यवहार दोनों में परिवर्तन लाएँ । 5. जैव-अनिम्नीकरणीय/संश्लेषित कचरों के उत्पादन और विसर्जन को न्यूनतम स्तर पर लाएँ । 6. लोगों को अपने आस-पास के पर्यावरण को सुंदर और स्वास्थ्यकर बनाए रखने के लिए प्रेरित करें।

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