बिहार में कुपोषण पर टिप्पणी लिखें। Bihar Mein Kuposhan Per Tippani Likhen.
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बिहार में कुपोषण पर टिप्पणी लिखें। Bihar Mein Kuposhan Per Tippani Likhen.

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Ans. बिहार में कुपोषण के निम्न कारण हैं

1. खाद्य पदार्थ का अभाव - कृषि प्रधान प्रांत होने के बाबजूद यहाँ खाद्य पदार्थों का सदैव अभाव - सा ही बना रहता है। यहाँ तक कि सरकार को अन्य प्रान्तों से अनाज, कर्ज या अनुदान के रूप में स्वीकार करना पड़ता है। जो भोजन मिल भी रहा है वह पौष्टिक तत्वों से रहित रहता है। अपर्याप्त आहार उत्पादन का कारण जलवायु की असमानता है।

2. निर्धनता - बिहार में निर्धनता का विशेष साम्राज्य है। जनसंख्या का अधिक भाग गरीबी रेखा के नीचे है। गरीबी के कारण लोगों की निम्न क्रय क्षमता (low purchasing power) है, यह भी कुपोषण का मुख्य कारण है। खाने को भोजन नहीं, पहनने को वस्त्र नहीं रहने को घर नहीं। फुटपाथ पर बड़े परिवार और इधर-उधर घूमते नंगे बच्चे हमें गाँव क्या शहर में भी देखने को तो मिल जाते हैं। कितनों को दूसरी जून के खाने का ठिकाना नहीं है। भूखमरी और अकालग्रस्त अतिनिर्धन वर्ग के दुखड़ों का कोई परिवार नहीं है। कभी सुखाड़ है तो कभी बाढ़। बिहार के परिवारों की सामाजिक, आर्थिक अवस्था (Socio-economic condition) सभी इसका एक प्रमुख कारण है। बढ़ती मँहगाई, कम आमदनी, निर्धन को उच्च पौष्टिक मूल्यों वाले भोज्य पदार्थों को खरीदने योग्य नहीं छोड़ती है।

" 3. अशिक्षा और अज्ञानता - पोषक तत्वों के महत्व से अनभिज्ञता (Ignorance of relation of food to health) और अज्ञानता भी सर्वव्यापी है। पोषक तत्वों के संरक्षण की विधि से लोग वाकिफ नहीं हैं। भोजन को तल कर खाने में उन्हें इस बात का अन्दाजा भी नहीं लगता है कि वे अपने ही हाथों से, जो कुछ उन्हें मिल सकता था, उसे भी नहीं ले रहे हैं। भोजन का पकाया पानी या माड़ आदि निकाल कर न जाने कितने पोषक तत्व हम स्वयं ही नष्ट कर देते हैं। अशिक्षा भी हमें सामयिक बातों से अनभिज्ञ रखती है। अज्ञानता के कारण सर्वसाधारण अपने ही हाथों से अपनी ही क्या, अपनी अगली पीढ़ी की भी हानि कर रहा है।

4. संक्रमण तथा रोग व्याधियाँ- रोग तथा रोगों के संक्रमण, कुपोषण की स्थिति उत्पन्न करने में, एक खास कारण बनते हैं। इनसे शरीर की जो स्थिति बन जाती है उस पर कुपोषण का सहज बीजारोपण हो जाता है। डायरिया मीजल्स आदि के बाद भूख खत्म हो जाती है, पोषक त्व शरीर में शोषित नहीं होते हैं और शरीर निर्बल होकर कुपोषण की स्थिति में चला जाता है। 5. मिलावट जो कुछ पौष्टिक तत्व मिल भी सकते थे वे लालची और मुनाफाखोर व्यापारी नहीं छोड़ते हैं। निम्नकोटि की वस्तु से खाद्य पदार्थों में लोभी और कुटील व्यापारी बड़ी चालाकी मिलावट करते हैं। व्यक्ति के अन्दर इनके कारण कितनी अधिक मात्रा में पोषक तत्वों काअभाव हो जाता है इसे कौन नहीं समझेगा? अर्थलोलुप व्यापारी अपनी करतूतों के अंजाम को समझ नहीं पाता है। इतना ही नहीं, इनके कुकर्मों से जनसामान्य के शरीर में कितने ही विष इकट्ठे होकर उसे स्वास्थ्य की घोर क्षति करते हैं और कैंसर आदि रोग उत्पन्न करते हैं।

 6. भोजन संबंधी आदत- अधिक तला-छना भोजन ज्यादातर लोग पसन्द करते हैं। पौष्टिक तत्वों से युक्त कम मसाले वाला उबला - सा भोजन देखकर, न केवल घर के प्रौढ़ और वृद्ध बल्कि युवा वर्ग भी नाक-भौं सिकोड़ते हैं। फलतः दूसरे दिन से फिर वही तली- छनी चीजें बनने लगती हैं और धीरे-धीरे यह हमारी आदतें बन गई हैं। हमें सादा भोजन पसंद नहीं है। चटपटा और चटकार भोजन हम बड़ी खुशी के साथ खाते हैं। जिसके बहुत से पोषक तत्व नष्ट हो चुके रहते हैं वही खाना सब पसन्द करते हैं। ये आदतें परिवार में आगे भी चलती जाती हैं क्योंकि व्यक्ति इनका आदी बन जाता है और एक परिवार की ऐसी आदत, दो-तीन बच्चों के माध्यम से उनके परिवारों में भी चलती जाती है। यों इनका कहीं अन्त नहीं है।

7. भोजन में अनियमितता - प्राय: अनियमितता बिहार के जीवन का अंग बन गई है। भोजन के बारे में भी यही बात है। कभी दिन का भोजन शाम को किया, कभी शाम का भोजन रात को किया। कभी नहीं भी खाया। कभी खाया तो इतना खा लिया कि अपच, पेट में दर्द, मिचली, बदहजमी हो गई।

8. अस्वास्थ्यकर वातावरण - सब कुछ होते हुए भी वातावरण की गन्दगी से भी भोजन अमृत समान रहते हुए भी, विषाक्त हो जाता है तब फिर रोग और बीमारी का सिलसिला ही चल पड़ता है जो व्यक्ति को निर्बल कर देता है। संक्रमण भी अनेकों को ग्रसित करता जाता है। कभी मक्खी के कारण, कभी रोगी के समीप रहने से भोजन अच्छा होते हुए शरीर में आत्मसात नहीं होता है। बल्कि शरीर के रहे- सहे स्वास्थ्य को भी समाप्त कर देता है। इसका कारण निर्धनता है जिसके कारण स्थान का, सुविधाओं का, भोजन संरक्षण के साधनों का अभाव अधिकांश भारतीय ग्रामवासियों की नियति है।

9. आहार के प्रति जागरूकता में कमी- गरीब प्रांत होने के कारण आम आदमी अपनी ही परेशानियों में उलझा रहता है। उसे इस बात की चिन्ता नहीं कि वह क्या खा रहा है? उसे पेट भरने से मतलब है।

10. सामाजिक और सांस्कृतिक रीति-रवाज- अधिकांश बिहारवासी अपने परिवेश की परम्पराओं से ऊपर उठना नहीं चाहते हैं। बिहार संस्कृति में कुछ ऐसी प्रथाएँ चली आ रही हैं कि श्रेष्ठ खाना पहले पुरूष वर्ग को दिया जाता है। दूसरा स्थान लड़कों का आता है। तीसरा स्थान पर बचा-खुचा ही घर की महिलाएँ और लड़कियाँ ग्रहण करती हैं। यह बात उन घरों के बारे में नहीं कही जा रही है जहाँ कुछ भी जागृति है या आधुनिकता की रोशनी है। यह उन अधिकांश परिवारों की बात है जो अभी रूढ़िवादिता के शिकंजों से मुक्त नहीं हुए हैं। विधवाओं के लिए कई एक चीजें वर्जित रहती हैं।

11. अत्यधिक कार्य- एक आम बिहारवासी अत्यधिक मेहनत करता है वस्तुतः उसके काम के अनुरूप, उसकी जरूरत के लिए उसे पूर्ण पौष्टिक तत्व नहीं मिलते हैं। जो वह खाता है वह उसकी जरूरत के लिए पूरा नहीं है। निरंतर ऐसी व्यवस्था से उसकी कार्यक्षमता गिरती जाती है तथा कमजोरी बढ़ती जाती है । प्रायः बुरी तरह से खाँसते हुए श्रमिक यत्र-तत्र देखने को मिल जाते हैं।

12. निद्रा का अभाव - गरीबी और बड़े परिवारों के कारण सुख-चैन से सोने के लिए आरामदायक स्थान का अभाव रहता है। कितने लोग तो दिन भर खटते हैं और रात को मच्छर और खटमल उनका खून चूसते रहते हैं। वे सो भी नहीं पाते हैं। फलतः कमजोर हो जाते हैं तथा रोगों की चपेट में आ जाते हैं। अगले दिन ऐसी हालत में रोजी-रोटी के लिए काम पर लग जाते हैं। उनका अपना स्वास्थ्य तो निरंतर गिरता ही जाता है साथ ही निम्न स्तर की कार्यक्षमता केकारण देश का उत्पादन भी प्रभावित होता है और देश निर्धनता की ओर बढ़ता जाता है। 13. घर की परिस्थितियाँ- बड़े-बड़े परिवार होने के कारण, घर में बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण, घर का सुखद वातावरण कम ही लोगों में देखने को मिलता है। ज्यादातर, कलह, लड़ाई झगड़े से, कभी अभाव से घर का वातावरण अशांत हो जाता है। दुःख और चिन्ता तथा प्रेम और अपनत्व का अभाव भी उन्हें पोषक तत्वों से वंचित रखता है। फलतः व्यक्ति के शरीर में वे पौष्टिक तत्व लगते भी नहीं हैं जिन्हें कैसे-कैसे करके, प्राप्त करता है। घर का माहौल बच्चों के संदर्भ में विशेष महत्व रखता है। यकीनन यह बड़ों को भी प्रभावित करता है।

14. भोजन सम्बन्धी मिथ्या आस्थाएँ- भोजन सम्बन्धी भ्रामक विचारों से कोई बचा नहीं है। समाज में प्रचलित भ्रान्तियों के कारण कई पोषक तत्वों से लोग वंचित रह जाते हैं। उनके दिल में बड़ी गहराई से पैठी, ऐसी मिथ्या आस्थाएँ उनका आखिर तक साथ नहीं छोड़ती हैं। यहाँ तक कि यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलती रहती है। एक परिवार से अनेकों परिवारों में फैलती जाती है। हर बच्चे के परिवार में पहुँच जाती है। धर्म का और संस्कृति का वहम अंधविश्वासों तथा सामाजिक मान्यताओं का भी इसमें हाथ है। जिसके कारण पोषक तत्वों से युक्त पदार्थ जो सहज उपलब्ध है वर्जित माने जाते हैं। कोई बीफ नहीं खाएगा, कोई लहसुन- प्याज नहीं खाएगा, कोई शलजम से बराब करेगा। इन्हीं कारणों से बिहार में घोर कुपोषण व्याप्त है।

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