ग्रामीण समुदाय में दस्तकारों की संख्या भी मुगलकाल में अत्यधिक बढ़ गयी थी। किसी-किसी गाँव में तो 25% घर दस्तकारों के ही थे।
कुम्हार, लोहार, बढ़ई, नाई एवं सुनार आदि प्रमुख ग्रामीण दस्तकार थे। इनकी बनी वस्तुओं की शहरों में अत्यधिक मांग थी।
खेतीहर परिवार एवं दस्तकार आपस में वस्तुओं एवं सेवाओं का विनिमय करते थे। बंगाल में जजमानी व्यवस्था विद्यमान थी।
बंगाल में जमींदार, लोहार, बढ़ई एवं सुनारों को उनकी सेवाओं के बदले रोज का भता एवं खाने हेतु नगदी देते थे। यही व्यवस्था जजमानी कहलाती है।