सती प्रथा
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी विश्व विख्यात रचना 'भारत की खोज' (The Discovery of India) में लिखा है कि सीथियस (Sythius) अपने देवताओं को खुश करने के लिए मनुष्य को बलि दे देते थे या उनके नाम पर सीथियस लोग आत्महत्या कर लेते थे। उसी का नकल भारत में होने लगा। जब किसी महिला का पति उससे पहले मर जाता था तो वह भी अपने पति के साथ उसी चिता पर जल जाती थी। इस प्रकार की घटना भारतीय समाज में सती प्रथा के नाम से शुरू हो गया। मध्यकाल में यह प्रथा और प्रबल होता गया। युद्ध में जब राजपूत राजा उसके सगे संबंधी और सेनाएँ मारे जाते तो रानी सहित सभी विधवा राजपूत महिलाएँ अपने पति के साथ सती हो जाती थी अर्थात् उनके साथ चिता में जल जाती थीं जिसे भारत के मध्यकालीन इतिहास में जौहर कहा जाता है। यह प्रथा भारतीय समाज में विकराल रूप धारण कर लिया। मुगलकाल में सर्वप्रथम अकबर ने इस कुप्रथा ( सती प्रथा) पर रोक लगवाया और उसके बाद औरंगजेब ने भी इसे प्रतिबंधित किया। उसके बाद अंग्रेजी राज में तत्कालीन गवर्नर जेनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक ने भी इस पर रोक लगाया था। लेकिन विलियम बैंद्धिक से पूर्व एक घटना यह घटी की राजा राम मोहन राय अपने घर से बाहर थे, इसी बीच इनके भाई की मृत्यु हो गई। उसके बाद उनकी भाभी को भी इस प्रथा के मुताबिक उनके भाई के साथ चिता में जल जाना पड़ा। जब राजा राम मोहन राय घर वापस आए और उनको इस दुखद घटना के बारे में पता लगा तो उन्हें बहुत गहरा दुख हुआ और इस सती प्रथा के प्रति बहुत क्षोभ भी। वैसे पूर्व से भी ये प्रगतिशील विचार के व्यक्ति थे। उस समाज में व्याप्त बुराईयों यथा बाल विवाह विधवा विवाह पर निषेध, जात-पात, ऊँच-नीच छुआछुत इत्यादि के प्रति इनका कटु विरोध था। जब वे विभिन्न देशों का भ्रमण किया और खासकर पश्चात सभ्यता-संस्कृति से वाकिफ हुए तो इनके मन में भी यह बात आयी कि क्यों न एक संस्था के माध्यम से सती प्रथा जैसे दुर्दात कुप्रथा का उन्मूलन किया जाय। परिणामस्वरूप 1828 ई० में उन्होंने ‘ब्रह्म समाज' की स्थापना की जिसके तहत उन्होंने सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल विवाह, मूर्ति पूजा इत्यादि का विरोध किया।प्रगतिशील विचार के व्यक्ति होने के नाते उन्होंने सती प्रथा को एक भारतीय समाज के लिए एक अभिशाप बताया और कहा कि यह प्रथा मानवता के नाम पर कलंक है और भारतीय समाज के दामन पर एक बहुत बड़ा धब्बा भी । इस अमानवीय प्रथा के रहते भारतीय समाज कभी भी सभ्य और सुसंस्कृत नहीं हो सकता है। यदि यह और दिनों, महीनों, सालों तक हमारे समाज में प्रचलित रहता है तो हमारा समाज एक बार पुनः बर्बर युग में प्रवेश कर जाएगा। यही कारण है कि अंग्रेजी हुकुमत और अंग्रेज विद्वत जन भारतीय समाज को जड़ और अपरिवर्तनशील कहते हैं और भारतीय जनता को अंधविश्वासी तथा शासक होने में अक्षम बताते हैं चाहे वे जेम्स मिल हो या जौन स्टुअर्ट मिल अथवा अन्य विद्वानगण। सती प्रथा के बारे में राम मोहन राय का कहना था, “यह अमानुषी प्रथा हमारे देश में शताब्दियों से चली आ रही थी और इसका अंत करने के लिए यदा-कदा जो प्रयास ब्रिटिश शासक के पूर्व किये गये, वे सदा विफल रहे, उन्होंने अपने अविरल आन्दोलन द्वारा एक ओर तो जनमानस तैयार किया, और दूसरी सरकार के हाथ मजबूत किये। अपने लेखों तथा वाद-विवादों द्वारा उन्होंने सती प्रथा के अंत के पक्ष में एक जबर्दस्त जनमत पा सकी। आज सती प्रथा प्रचलित नहीं है।