ब्रह्माण्ड के सभी अवयव किसी-न-किसी प्रकार एक दूसरे को संरक्षण प्रदान करने में सहायक हैं तथा परस्पर प्रकृति संचालन में योगदान करते हैं। इन अवयवों की उपयोगिता इसी से स्पष्ट है, कि सूर्य को यदि ब्रह्माण्ड से पृथक् कर दिया जाये तो पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा तथा प्राणी जगत् शून्य जायेगा।
आज से करोड़ों वर्षों पूर्व पृथ्वी सूर्य से अलग होकर एक ग्रह के रूप में विकसित हो गयी। प्रकृति का कण-कण रहस्यों से भरा हुआ है। इन रहस्यों को समझने तथा उसके परिणामों को ज्ञात करने के लिये पर्यावरण विषय ने जन्म लिया है। ब्रह्मा के द्वारा मानव सृष्टि का उल्लेख हमारे वेद, उपनिषद् तथा पुराणों में मिलता है। मानव उत्पत्ति तथा प्रकृति का इतिहास और सम्बन्ध अत्यन्त प्राचीन एवं प्रकृति की विकास यात्रा का लम्बा चरण है। मनुष्य ज्यों-ज्यों बुद्धि तथा संज्ञान के आधार पर आगे बढ़ता गया उसी क्रम में मनुष्य को प्रकृति के रहस्य को जानने की उत्कण्ठा तथा बलवती व अतृप्त होती चली गयी।
इसी उत्कण्ठा या जिज्ञासा हेतु मानव ने पर्यावरण को अपने अध्ययन व उपयोग का विषय बना लिया जिसके आधार पर मनुष्य ने भौतिक विकास के लिये सुख-सुविधाओं की प्राप्ति हेतु वस्तुओं की लम्बी सूची का निर्माण कर लिया एवं तृप्ति के लिये अनेक साधन खोजे जाने लगे। इसी कारण पर्यावरण आज महत्वपूर्ण तथा अनिवार्य आवश्यकता बन गया है।