बच्चों के दृष्टिकोण से पर्यावरण को एक विषय के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि बालक पर्यावरण के प्रति विशेष प्रकार का दृष्टिकोण रखते हैं, जो उनको रोमांचित करता है; जैसेबालकों से एक ओर कहा जाय कि आज हम आपको जैविक पर्यावरण के बारे में ज्ञान प्रदान करेंगे वहीं दूसरी ओर कहा जाय कि आज हम आपको तालाब के किनारे ले जाकर विभिन्न प्रकार के स्थलीय जन्तुओं को दिखायेंगे।
इन दोनों कथनों में प्रथम कथन छात्रों में एक सामान्य प्रतिक्रिया उत्पन्न करेगा, क्योंकि जिस प्रकार अन्य विषयों का ज्ञान प्राप्त करना छात्रों को अरुचिकर लगता है उसी प्रकार जैविक पर्यावरण का ज्ञान प्राप्त करना भी उनके लिये अरुचिकर होगा। द्वितीय कथन छात्रों के मन में जिज्ञासा एवं रुचि उत्पन्न करेगा क्योंकि छात्रों के मन में जलीय जन्तुओं को देखने का उत्साह है, जिससे उनका मन रोमांचित हो उठता है।
इस प्रकार पर्यावरणीय क्रियाओं को छात्र रोमांचक क्रियाओं के रूप में स्वीकार करता है। उदाहरणार्थ, बालक से विद्यालय के उद्यान में एक पौधा लगाने के लिये कहा जाय तो बालक पौधा लगाने के पश्चात् उसको प्रतिदिन देखता है तथा यह जानने का प्रयास करता है कि पौधे में वृद्धि किस प्रकार हो रही है तथा उसके लिये कौन-कौन से तत्त्वों की आवश्यकता होती है।
इस प्रकार छात्रों के लिये भौतिक पर्यावरण, जैविक पर्यावरण एवं मनोसामाजिक पर्यावरण का ज्ञान रोमांच एवं जिज्ञासा का विषय होता है। इस जिज्ञासा को शान्त करने का प्रयास बालक के शिक्षक एवं अभिभावक द्वारा अनिवार्य रूप से करना चाहिये ।
बच्चे के पर्यावरणीय सम्बन्धी विचारों से आशय उसके कार्य एवं व्यवहार से होता है, जिसे वह पर्यावरण के प्रति प्रदर्शित करता है। बालक जब भी किसी वस्तु या व्यक्ति को देखता है तो उसके बारे में जानने की उसकी इच्छा होती है।
प्रथम दृष्टि में बालक अपनी योग्यता एवं स्तर के अनुसार समझने का प्रयास करता है परन्तु द्वितीय स्थिति में वह अपने से सम्बन्धित व्यक्तियों के माध्यम से उसके बारे में जानने का प्रयास करता है। उदाहरणार्थ, तीन वर्ष की अवस्था में बालक आत्म-केन्द्रित रहता है तथा अपने ही बारे में विचार करता है, चार वर्ष की अवस्था में बालक बहिर्मुखी होकर दूसरों के बारे में भी विचार करने लगता है।
पर्यावरणीय समझ के बारे में सीखने का प्रयास बालक अपने परिवार से करता है। परिवार में प्रत्येक व्यक्ति के कार्य एवं व्यवहार के माध्यम से बालक अपने विचार बनाता है। दूसरों शब्दों में, बच्चे के पर्यावरणीय विचारों का आशय बालक द्वारा पर्यावरणीय वस्तुओं को आत्मसात् करने से है, जिनमें वह परिवेश की प्रत्येक वस्तु को देख परख कर उसके गुणों के बारे में विचार करता है।