मनुष्य के आस-पास के वातावरण में मौजूद लेकर वह तक उक्त पर्यावरणीय घटक होते हैं। इन सबका एक-दूसरे से इतना गहन स्वहै कि यह एकदम से उत्पत्ति विकास एवं संवर्द्धन में आया बदलाव का अतुलित है धरती के समस्त जीवधारी चाहे दे जंतु जगत के सदस्य हो अथवा स्वरूपते जमत इ–जकुष्य के लिए जैविक पर्यावरण का निर्माण करते हैं।
अध्ययन की सुविधा के लिए हम जैविक पर्यावरण को मुक्त दो भागों में विभाजित कर सकते हैं -
1. जन्तु जगत - वैज्ञानिकों ने अध्ययन एवं जंतुओं के विकास के क्रम को वैज्ञानिकता सुटकर के लए इन्हों पर विद्यमान अथवा विलुप्त हो दुक समस्त जंतुओं का निम्नलिखित खाँ नं देताजत केय है
(i) प्रोटोजोआ (Protozoa) अकाशिकीय या एक काशय गंतु
(ii) पोटरीफेरा (Porifera) छिद्रयुक्त जंतु
(iii) सीलेण्ट्रय (Coelentarata) उदर सहित जंतु
(iv) हेल्मियीज (Helmintha) कृमि
(v) मोलस्क (Molluscs) बांधा, सीप,
(vi) एनीलीडा (Annelid) दलयाकार खण्डित संरचना बालजंदु
(vii) आर्द्रापाडा (Arthropods) कीट पतंग
(viii) इकाइनोडर्मटा (Echinodermata) तारा मछली
(ix) डेमीकार्डटा (Hemichordata) अकशठकीय जंतु
(x) कार्डटस (Chordata) या (Vertebrates) वेढवाल जीव-जंतु इनके हो अवष्य को शामिल
इन समस्त जंतुओं का प्रकृति के हर-एक तत्त्व से गहरा संबंध होता है इसे इसक विस्तार पर्यावरणीय दशाओं से ही प्रभावित होता है।
चार्ल्स एल्टन (Charles Alton-1927) ने अपनी पुस्तक पशु मायाकं Amma Kaning में स्पष्ट उद्धृत किया है- कोई प्राणी ऐसा नहीं है जा संसार को समस्त स्याकरर्णयाओं के जीवनयापन कर ले। अपने विकास क्रम में प्रत्येक प्राणी समूह कुछ विशिष्ट प्राय दक्षाओं के समायोजित होकर इसका आदी हो जाता है। इसी समायोजन से इसका विकास संभव होता है।
चार्ल्स के कथन के मुख्य घटक पारिस्थितिकी का अध्ययन हम बाद में करोगे वह एक शक बिल्कुल स्पष्ट है कि जंतु-जगत के सभी जीवों का उनके पास-पास के वातावरण के कार संबंध है कि इसी वातावरण के कारण ही उनका जीवन संभव हो पाता है। जैसे मनुष्य के लिए आवश्यक है कि उसके खेत जोतने वाले बैल, दूध देने वाले जानवर गाय, भैंस, ऊन देने वाली भेड़ें, स्वामी भक्ति दर्शाने वाले कुत्ते, सड़ी-गली चीजों को नष्ट करने वाले सूअर और गिद्ध जैसे अन्य जानवर भी वहाँ मौजूद रहने चाहिए, जहाँ उसे (मनुष्य) जीवनयापन करना है। इसके अतिरिक्त उसके खाने के लिए अनाज, दवाओं के लिए औषधियों और मकान बनाने तथा ईंधन के लिए लकड़ी की भी जरूरत पड़ती है। ये वस्तुएं मनुष्य अपने वातावरण के वनस्पति समुदाय से प्राप्त करता है।
2. वनस्पति जगत - पर्यावरण के जैवीय घटक का यह दूसरा अति महत्वपूर्ण पक्ष है। जिस प्रकार जीवन के लिए पर्यावरण में पाये जाने वाले सूक्ष्मतम जंतुओं तक सभी का महत्त्व होता है, उसी प्रकार धरती पर जीवन के लिए सूक्ष्मतम से लेकर शिकोना वृक्ष जैसी वृहदाकार वनस्पतियाँ भी महत्वपूर्ण होती हैं। अतिसूक्ष्म अणुजीव बिना शीथ वाले बैक्टीरिया, एल्गी (शैवाल) फफूँद (Fungi) लाइकेन (Lichen), ब्रायोफाइटा (Bryophytes), टेरिडोफाइटा (Pteridophytes) से लेकर जिम्नोस्पर्म (Gymnosperm) और एन्जियोस्पर्म (Engyosperm) कुलों तक के समस्त पौधे हमारे पर्यावरण में ही मौजूद रहते हैं।
पर्यावरण के लिए पौधों का महत्व हम इसी से आंक सकते हैं कि खाने के लिए अनाज, फल, दालें, सब्जियाँ आदि इन पौधों से ही हमें प्राप्त होती हैं। रोगों से निजात दिलाने वाली औषधियाँ हमें पौधे ही देते हैं। पहनने के लिए कपड़ों का निर्माण पौधों से प्राप्त रूई के धागे से ही होता है। मकान बनाने और ईंधन के लिए लकड़ियाँ हमें पौधों से ही मिलती हैं। पशुओं के लिए चारा पौधे देते हैं। फर्नीचर पौधों से ही प्राप्त होते हैं। इतना ही नहीं हमारे प्रत्येक उच्छवास से निकली कार्बन डाइ ऑक्साइड को ये पौधे स्वयं ग्रहण कर लेते हैं तथा हमें जिंदा रखने वाली ऑक्सीजन वायु में छोड़ देते हैं। इसी से अंदाजा लगाया जाता है कि जंतुओं, मनुष्य को जीवित रहने से लेकर सभ्यता विकसित करने तक के अवसर ये पौधे हमें सुलभ कराते हैं। पर्यावरण के जैवीय प्रकार के वनस्पतियों के समूह का महत्त्व कितना है, इसका अंदाजा उक्त वर्णन से लगाया जाता है।