पर्यावरण विघटन के प्रमुख दो ही कारण होते हैं-
1. प्राकृतिक प्रक्रियाएँ तथा
2. मानवीय क्रियाएँ,
परंतु यह क्रियाएँ अचानक होती हैं जिनका सीधा प्रभाव जैविक समुदाय पर कई रूप में पड़ता है। यहाँ पर्यावरण विघटन के मूल कारणों को दिया गया है।
1. प्राकृतिक प्रक्रियाओं से (Natural Process) — भूकंप, भूचाल, बाढ़, आँधी का आना, वनों में आग लगना, सूखा पड़ना, अति वर्षा का होना आदि। इन पर मनुष्य का नियंत्रण नहीं होता है, क्योंकि ये प्रक्रियाएँ अचानक होती हैं।
2. मानवीय क्रियाओं से (Human Activites ) - यह क्रियाएँ नियंत्रित की जा इनका प्रभाव धीमी गति से निरंतर होता रहता है।
(i) आधुनिक तकनीकी का विकास होना।
(ii) जनसंख्या की वृद्धि तथा विस्फोट होना।
(iii) प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग व अधिक दबाव से
(iv) औद्योगिक विकास तथा कारखानों का खुलना।
(v) शहरीकरण से आवास की समस्या तथा अन्य प्रदूषण की समस्या |
(vi) मनुष्य द्वारा आर्थिक कार्यों का अधिक विकास करना।
(vii) कृषि में रासायनिक खाद तथा कीटनाशक दवाओं का प्रयोग।
उपर्युक्त सभी कारणों में सुधार इस सीमा तक किया जा सकता है जिससे जीवधारियों तथा मनुष्य पर कम-से-कम कुप्रभाव पड़े। इस प्रक्रिया को सामंजस्य स्थिरता यांत्रिकी (Homesotatic Mechanism) कहते हैं। पर्यावरण की भौतिक तथा जैविक प्रक्रियाएँ प्राकृतिक पर्यावरण प्रणाली में स्वतः ही संचालित होती हैं तथा कुप्रभावों की पूर्ति नकारात्मक पृष्ठपोषण के रूप में करती रहती है।