पर्यावरण अध्ययन में जन चेतना (Public Awareness in Environmental Study) पर्यावरण के प्रति जन चेतना की आवश्यकता इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि पर्यावरण एवं मानव में गहरा संबंध है। मनुष्य पर्यावरण के साये में जन्म लेता है, पलता है एवं विकसित होता है। मनुष्य जन्म से ही पर्यावरण के तत्त्वों से परिचित होता है, क्योंकि मनुष्य की आर्थिक क्रियायें पर्यावरण के के द्वारा प्रभावित होती हैं। मनुष्य प्राकृतिक घटनाओं को करीब से देखता है, वह अपने कार्यों और अधिवासी की रक्षा हेतु विभिन्न उपाय करता है। यहीं से पर्यावरण संगठन शुरू होता है। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण ने तथ्यों को इतना नुकसान पहुँचाया है कि पर्यावरण लोगों के रहने लायक नहीं रहा। लोगों का पर्यावरण बोध इतना घट गया है कि वह मानने को तैयार नहीं कि अज्ञानता के कारण पर्यावरण को क्षति हुई है।
अतः पर्यावरण अवनयन को रोकने हेतु अध्ययन की आवश्यकता है। पर्यावरण की जानकारी के लिए जन-जन एवं घर-घर तक चेतना पहुँचाने की आवश्यकता है। इसके लिए सामाजिक व्यवस्था एवं धार्मिक स्वरूप व्यापक एवं सशक्त माध्यम है। हमारी जीवन शैली का आधार प्राकृतिक घटक हैं। आज विश्व के विकसित कहे जाने वाले देशों में पर्यावरण अध्ययन के कारण भय का वातावरण व्याप्त है, क्योंकि औद्योगिक उत्पादन की प्रगति हेतु इन देशों ने पर्यावरण की अनदेखी की है। इनका पर्यावरण बोध इतना कमजोर हो गया है कि वे प्रकृति को बर्बाद कर रहे हैं। विकसित देशों ने अपनी तकनीकी के बल पर संसाधनों का इतना दोहन एवं उपयोग किया है कि आने वालों के संबंध में विचार हीं नहीं किया।पर्यावरण संबंध में जन चेतना मानव को प्रकृति के नजदीक ले जाती है। पर्यावरण से नजदीकियाँ मानवीय गुणों को जन्म देती हैं। पर्यावरण के संबंध में जन चेतना का बोध उस सामाजिक जागरूकता को कहते हैं जो मनुष्य ने प्रकृति प्रेम की प्रवृत्ति को जगाकर अगली पीढ़ी हेतु सुरक्षित रखता है। भारत में ग्रामीण वृक्षों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। कुछ ऐसे पौधे या वृक्ष हैं जिनका संरक्षण साधारण व्यक्ति भी करता है। जैसे-तुलसी, पीपल आदि। पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने हेतु जन चेतना आज के युग की माँग है। जन चेतना को बढ़ावा देने हेतु गोष्ठी, नाटक, रेडियो, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिका, अखबारों से भी उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1944 को पर्यावरण चेतना का वर्ष घोषित किया था।
2001 में भी पर्यावरण चेतना के प्रयास किये गए। पर्यावरण के संबंध में जनचेतना की आवश्यकता के पीछे मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. पर्यावरण एवं मनुष्यों की पारस्परिक निर्भरता को समझना।
2. सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक विकास हेतु सामूहिक रूप में क्रियाकलापों को शुरू करना।
3. जनचेतना के माध्यम से पर्यावरण के संबंध में जानकारी देना।
4. प्राकृतिक तत्त्वों का दोहन वैज्ञानिक विधि से करने का सुझाव|
5. भारत के संदर्भ में जनचेतना को देखा जाए तो चिपको आंदोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, टिहरी बाँध परियोजना आन्दोलन, अरावली बचाओ आन्दोलन, आदि प्रमुख जन आन्दोलन हैं। ये सभी आंदोलन प्रकृति के संरक्षण हेतु आयोजित किये जा रहे हैं। भारत में जल संरक्षण हेतु जलछाजन योजनायें बनाई जा रही हैं। दिल्ली जब बोर्ड एवं भागीदारी संस्था ने मिलकर वर्षा के जल के संरक्षण पर अभियान चलाया है।
पर्यावरण संबंधी जनचेतना को जाग्रत करने के उपाय (Various Techniques for Public Awareness Regarding Environment) पर्यावरण जनचेतना जाग्रत करने के भिन्न क्षेत्रों, दशाओं, आयुवर्गों तथा व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक स्तर के अनुसार तरीके भी भिन्न-भिन्न हैं -
1. टी. वी. जन संचार का सबसे शक्तिशाली माध्यम है। टी. वी. कार्यक्रमों, फिल्मों, विज्ञापनों, चर्चाओं, नाटकों तथा लोकगीत, संगीत के माध्यम से पर्यावरण की बात समझायी जा सकती है।
2. आकाशवाणी, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पोस्टरों व होर्डिंग्स इत्यादि के माध्यम से भी पर्यावरण के प्रभावशाली तथ्यों को उभारा जा सकता है।
3. पर्यावरण दिवसों, रैलियों, कैम्पों, नुक्कड़ नाटकों, कवि सम्मेलनों, कार्यशालाओं, विचार-गोष्ठियों, सेमिनारों, प्रश्नोत्तरियों तथा प्रतियोगिताओं के माध्यम से जन सामान्य तक जन चेतना पहुँचाई जा सकती है।
4. स्कूल, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों की प्रत्येक कक्षा में पर्यावरण अध्ययन को सुरुचिपूर्ण ढंग से पाठ्यक्रम में शामिल करने से जागरूकता का आधार विस्तृत होगा।
5. देशभर में फैले धर्मगुरु, कथावाचक, भजनी-सांगी अपने प्रवचनों के कार्यक्रमों में किसी न किसी तरीके से पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को प्रस्तुत करने में मदद कर सकते हैं।
6. पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कानूनों को सख्ती से लागू कर जहाँ दोषी व्यक्तियों को दण्डित किया जाए, वहाँ पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले व्यक्तियों, संस्थाओं को पुरस्कृत व सम्मानित भी किया जाए।