मशहूर शायर अल्लामा इकबाल ने "हिन्दी हैं हम वतन है, हिन्दोस्तां हमारा" नामक गीत में जो लिखा है वह इस शीर्षक को बखूबी व्याख्यायित करता है
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा, हम बुलबुले हैं इसकी, यह गुलस्तिां हमारा । मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तां हमारा ।। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं मिटाए सदियों रहा है दुश्मन दौरे-जमां हमारा । चुनानों-मित्रों-रोम, सब मिट गए जहाँ से, अब तक मगर है बाकी नामो-निशां हमारा ।। इक कोई मरहम अपनी नहीं जहाँ में मालूम या किसी को नहीं हमारा।।
भारतीय संस्कृति की यह विशालता है कि इस भू-भाग में जो भी आया-आगन्तुक बनकर या आक्रांता बनकर, यात्री, मेहमान, दोस्त, शत्रु, यहाँ के मूल बाशिंदों ने, निवासियों ने उनको अपनी संस्कृति-सभ्यता के रंग में रंग लिया और वे भी हिन्दी हो गये यानी हिन्दुस्तान के ही हो के रह गये। भले ही उनका धर्म, उनकी विचारध रा, मान्यताएँ-संस्कृति, रस्मो-रिवाज जो भी हो।
हमारा देश हिन्दोस्तां एक फुलवारी है। एक रंग-बिरंगी फुलवारी। जैसे एक फुलवारी में अनेकों रंग रूप के भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार के फूल खिलते हैं, वैसे के ही हमारे देश में नाना प्रकार के रंग-जाति-भाषा-संस्कृति के लोग रहते हैं। वे अपने-अपने समुदाय की परंपरा को जीते हुए भी इस देश की नागरिक-धारा में स्वयं को सहज ही समाहित कर लेते हैं और हिन्दी बन जाते हैं यानी भारतीय।
अतः हमारा देश विविधताओं में भी एकरूपता का आदर्श नमूना है। यहाँ के नागरिक सदियों पुरानी सनातनी सभ्यता-संस्कृति से किसी-न-किसी प्रकार से - प्रभावित हो, इस देश को अविरल धारा की अनगिनत लहरों में एक बन ‘हिन्दी' बन में जाते हैं अर्थात् हिन्दी देश के निवासी और कहने को सभी आतुर हो जाते हैं कि 'हिन्दी हैं हम' यानी हम हिन्दोस्ताँ के नागरिक हैं भले ही हमारी जाति, धर्म, मजहब, तौर-तरीके कुछ भी हों पर मूल मंत्र है कि 'हिन्दी हैं हम' यानी एक राष्ट्र के निवासी हैं हम।