आज सम्पूर्ण विश्व के लिए सर्वाधिक चिंता का विषय है उसे हम पर्यावरण की समस्या कहते हैं। इसके कारण मानव का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है। हम जिस प्राकृतिक वातावरण में रहते हैं, अर्थात् हमारे आसपास चारों ओर जो प्राकृतिक आवरण है उसे हम 'पर्यावरण' कहते हैं। वायुमंडल, वन, पर्वत, नदियाँ जल आदि इसके अंग कहलाते हैं।
हमारे जीवित रहने की जितनी शर्ते हैं उनमें पर्यावरण की शुद्धता महत्त्वपूर्ण है। लेकिन, आज हमारा यह पर्यावरण ही प्रदूषित हो गया है। मानव ने अपनी सुख-सुविधा के लिए जो कुछ किया है, उसी से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई है। पर्यावरण के घटकों के संतुलन बिगड़ने को ही पर्यावण प्रदूषण कहा जाता है। पर्यावरण प्रदूषण के कई रूप हैं वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा (मिट्टी) प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण आदि। ,
प्रदूषण के कई कारण हैं। सर्वप्रथम वृक्षों की कटाई ही इसका बड़ा कारण है। वैध अथवा वैध तरीकों से बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई के कारण पर्यावरण संतुलन में बाधा उत्पन्न हुई हैं पेड़-पौधो वायुमंडल के कार्बन का अवशोषण करते हैं। इससे एक ओर वायुमंडल अर्थात् वायु की स्थिति सामान्य बनी रहती है तथा दूसरी और इससे वर्षा भी होती है। इसी तरह, ईंधन के रूप में लकड़ी का प्रयोग, बढ़ती हुई गाड़ियों के प्रयोग से धुआँ तथा बड़े पैमाने पर जहरीले और हानिकारक गैसों के वातावरण में मिलने से वायु प्रदूषण हो रहा है। बड़े-बड़े नगरों और औद्योगिक कारखानों से निकलनेवाले जहरीले अवशेष नदियों में गिराए जा रहे हैं। इससे जल प्रदूषण का खतरा उत्पन्न हो गया है। वाहनों और कल-कारखानों से होनेवाली तेज आवाज के कारण ध्वनि प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है। इसी तरह, रासायनिक और कीटनाशक औषधियों के प्रयोग से मिट्टी भी प्रदूषित हो रही है। -
पर्यावरण प्रदूषण से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं और संभावनाओं का खतरा बढ़ता जा रहा है। इसका सबसे भयानक प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य के ऊए पड़ता है। जहरीली गैसें हवा में मिलती जा रही हैं। कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ोत्तरी हो रही है। इसका बुरा प्रभाव मानव-शरीर के ऊपर की उर्वरा शक्ति का ह्रास, अनियमित वर्षा और प्रदूषित वायुमंडल के कारण हमारे खेतों की उपज में कमी होगी। इसेस ऋतुचक्र प्रभावित होगा। गर्मी अधिक पड़ेगी। पेय जल का संकट उत्पन्न होगा। वनों की कटाई से वायुमंडल में जलवाष्प की कमी हो गई है। वर्षा कम होने से जल-स्तर जमीन के नीचे गिरता जा रहा है। इससे वाष्प-निर्माण का संतुलन बिगड़ रहा है। इसका परिणाम अकाल, अर्थात् अनावृष्टि के रूप में सामने आएगा।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण ओजोन संकट उत्पन्न हो रहा है। धरातल से लगभग 25 किलोमीटर ऊपर एक बीस किलोमीटर का गैस आवरण है, जिससे धरती की सुरक्षा होती है। इस आवरण को ओजोनमंडल कहा जाता है। इससे धरती के ऊपर के वायुमंडल की सुरक्षा होती है तथा सूर्य की किरणों को इससे पार करना पड़ता है, जिससे उसकी हानिकारक किरणें धरती पर नहीं आ पाती हैं। आज इस ओजोनमंडल में छिद्र हो गया है। धरती के पर्यावरण प्रदूषण के कारण ओजोन हमारी सुरक्षा करने में असमर्थ हो रहा है। इसी तरह अन्य तरह के प्रदूषणों से मानव और प्राकृतिक उपादनों पर खतरा उत्पन्न हो हो रहा है। खतरा तो यहाँ तक बढ़ गया है कि तेजाबी वर्षा का भय तक उत्पन्न हो रहा है। पर्यावरण प्रदूषण से बचाव हो सकता है। मानव ने ही पर्यावरण को प्रदूषित
किया है। यही इसमें सुधार ला सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाए जाएँ, वनों की सुरक्षा की जाए। अन्धाधुंध वन-कटाई को रोका जाए। वाहनों और औद्योगिक संस्थानों से निकलनेवाली धुआँ हमारे वायुमंडल को प्रभावित कर रहा है। इस पर ध्यान दिया जाए। इसे कम किया जाए। शहरों के नालों और औद्योगिक संस्थानों के मलवे को नदियों में गिरने से रोका जाए। इसी तरह अन्य उपाय भी किए जा सकते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या विश्व-स्तर की समस्या है। इस पर संपूर्ण विश्व को सोचना होगा। यही कारण है कि सभी देशों ने अपेन-अपने यहाँ पर्यावरण सुरक्षा को एक अभियान के रूप में लिया है। इस संबंध में भारत ने इसके लिए कई कड़े कदम उठाए हैं। जैसे-1974 ई० में जल-प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम, 1986 ई. में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम आदि की व्यवस्था की गई है। इस तरह, पर्यावरण प्रदूषण निश्चय ही मानव जाति को क्या, संपूर्ण चराचर के लिए चिंतनीय विषय बन गया है।