दहेज प्रथा पर निबंध। Dahej Pratha Par Nibandh
हमारे वर्तमान सामाजिक जीवन की सर्वाधिक असाध्य व्याधि है : दहेज प्रथा (Dowry System)
दहेज मातृ-शक्ति की विकटता के समक्ष भयंकर प्रश्न चिह्न है। सदियों से शोषित नारी आज तक वास्तविक मूल्यवत्ता से वंचित है। दहेज उसकी उदात्त अभिवृत्तियों का उपहासात्मक पुरस्कार है।
आदि-शक्ति दुर्गा, विद्या-दातृ सरस्वती और दान-दातृ लक्ष्मी को अनाद्धृत करने वाली यह विषैली प्रथा बीसवीं शताब्दी की जागरूक मनीषा के सम्मुख बहुत बड़ी चुनौती है।
दहेज प्रथा अत्यन्त पुरानी है। ऋग्वेद में इस प्रथा के प्रारम्भिक रूप दृष्टिगत होते हैं, किन्तु तब यह प्रथा निष्कलुष थी।
संभवतः नयी-नयी गृहस्थी बसाने वाले जोड़े की सुविधा के लिए ही इस प्रथा की शुरुआत हुई। आरम्भ में यह प्रथा कन्या पक्ष के प्रेम प्रदर्शन के रूप में प्रकट हुई।
मध्यकाल में यह अपनी अपनी वास्तविक चेतना खो बैठी। इसने झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा का रूप ले लिया। अधिकाधिक दहेज लेना शान की बात समझी जाने लगी।
नि:संदेह आज यह प्रथा घृणित, अमानवीय एवं अनुचित है, और इसका रचनात्मक विरोध होना चाहिए पर, विरोध करे कौन?
शिक्षित समाज अथवा प्रशासन! नहीं, वहाँ तो रग-रग में इस कैंसर के कीटाणु प्रविष्ट कर गये हैं। कुल प्राध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियर और आई० ए० एस० अफसर दहेज लेते लज्जित नहीं होते वहाँ विरोध महज एक आकर्षक छलावा ही है।
वस्तुतः दहेज प्रथा का विरोध वाणी से नहीं कर्म से होनी चाहिए और वह भी सामूहिक स्तर पर हो तो निश्चित ही सफलता मिलेगी।
दहेज प्रथा के दुष्पणिाम अनगिनत हैं। अल्प-विनीय परिवार की अतिशय रूपवती, शीलवती एवं गुणवती कन्याएँ भी दहेज के अभाव में गदहों के गन्ने बाँध दी जाती हैं। दहेज रोग वर-कन्या के मिलन मार्ग को सबसे बड़ी बाधा है। कन्याओं का आत्मदाह, अनुचित असामाजिक वृत्तियों का अवलम्बन दहेज़ प्रथा का घृणित एवं कुत्सित प्रतिफल है।
मूलतः यह प्रथा नारी की अस्मिता के अवमूल्यन की ओर संकेत करती है। किन्तु, तत्वतः पुरुष वर्ग से अधिक दोषी नारी वर्ग ही है।
यदि तमाम माताएँ अपने पुत्रों की शादियाँ बिना दहेज लिए करने का संकल्प करेंगी, तो अवश्य ही समाज को इस कुष्ठ से त्राण मिलेगा।
सच्चाई तो यह है, कि बहुओं को तिलक-दहेज के लिए सास और ननद के ही विष बुझे तीन सहने पड़ते हैं, पति और ससुर की झिड़कियाँ कम सुननी पड़ती है।
हमारे समाज की धमनियों में पूरी तरह दहेज का जहर फैल चुका है। तमान नर-नारी के दृढ़संकल्प के मंत्र ही इस विष को उतार पायेंगे।
कन्याओं को आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर एवं मानसिक दृष्टि से सशक्त बनाना होगाम, और दहेज माँगने वालों को निर्भीकतापूर्वक बहिष्कृत और तिरष्कृत करना पड़ेगा।