छात्र जीवन पर निबंध। Chatra Jeevan Par Nibandh
जीवन को आनंदपूर्वक जीने के लिए विद्या (Knowledge) और अनुशासन (Discipline) दोनों आवश्यक हैं। विद्या का अंतिम लक्ष्य है : इस जीवन (Life) को मधुर तथा स्वधापूर्ण बनाना। अनुशासन का भी यही लक्ष्य है।
अनुशासन भी एक प्रकार की विद्या है। अपनी दिनचर्या को, अपनी बोल-चाल को, अपने रहन-सहन को, अपने सोच-विचार को, अपने समस्त व्यवहार को व्यवस्थित करना ही अनुशासन है।
एक अनपढ़ गँवार व्यक्ति के जीवन में क्रम और व्यवस्था नहीं होती, इसीलिए उसे असभ्य, अशिक्षित (Illiterate) कहा जाता है।
पढ़े-लिखे व्यक्ति से यही अपेक्षा की जाती है, कि उसका सबकुछ व्यवस्थित हो। अतः अनुशासन विद्या का एक अनिवार्य अंग है।
विद्यार्थी के लिए अनुशासित होना परम आवश्यक है। अनुशासन से विद्यार्थी को सब प्रकार का लाभ ही होता है। अनुशासन अर्थात् निश्चित व्यवस्था से समय (Time) और धन (Money) की बचत होती है।
जिस छात्र ने अपनी दिनचर्या निश्चित कर ली है, उसका समय व्यर्थ नहीं जाता। वह अपने एक-एक क्षण क समुचित उपयोग कर पाता है।
वह समय पर मनोरंजन (Entertainment) भी कर लेता है, तथा अध्ययन (Study) भी पूरा कर पाता है। इसके विपरीत अनुशासनहीन छात्र आज का काम कल पर और कल का काम परसों पर टालकर अपने लिए मुसीबत इकट्ठी कर लेता है।
छात्रों को अनुशासनप्रिय (Disciplined) होना अत्यन्त आवश्यक है, क्यंकि अनुशासन ही छात्र को सही दिशा दिखला सकता है।
शिक्षकों और गुरुजनों के अनुशासन में रहकर ही में छात्र समुचित रीति से विद्या ग्रहण करते हैं, और अपने चरित्र को उन्नत बनाते हैं। छात्र अनुशासन की संस्कृति से लाभान्वित होकर ही विश्व में अपने यश की सुगन्ध फैला सकते हैं।
अनुशासन का अर्थ बंधन नहीं है। उसका अर्थ है- व्यवस्था। हाँ! उस व्यवस्था के लिए कुछ अनुचित इच्छाओं से छुटकारा पाना पड़ता है।
उनसे छुटकारा पाने में ही लाभ है। छात्र यदि सभ्य बनने के लिए अपनी गलत आदतों (Bad Habits) पर रोक लगाते हैं, तो वह लाभप्रद ही है।
अतः अनुशासन जीवन के लिए परमावश्यक है, तथा उसकी प्रथम पाठशाला है : विद्यार्थी जीवन (Student Life).