पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य एवं क्षेत्र बताइये। Paryavaran Shiksha Ke Uddeshy AVN Kshetra Bataen.
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पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य एवं क्षेत्र बताइये। Paryavaran Shiksha Ke Uddeshy AVN Kshetra Bataen.

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उत्तर: पर्यावरणीय शिक्षा के उद्देश्य एवं क्षेत्र (Aims and Scope of Environmental Education) शिक्षा एक सोद्देश्य प्रक्रिया है। शिक्षा के उद्देश्य समय-समय पर समाज, राष्ट्र तथा राजनीति अनुसार बदलते रहते हैं। कुछ लोग शैक्षिक उद्देश्यों को संकीर्ण रूप में लेते हैं। इनके अनुसार पाठ्यक्रम पढ़ाना ही शैक्षिक उद्देश्य की पूर्ति कहलाता है। शिक्षा का उद्देश्य केवल निर्धारित पाठ्यक्रम पढ़ा देना ही नहीं है, अपितु शिक्षा का उद्देश्य छात्र के व्यवहार में परिवर्तन लाना है। छात्र के व्यवहार रूप का निर्धारण समाज के द्वारा होता है।

इस प्रकार शैक्षिक उद्देश्यों से हमारा आशय छात्रों के व्यवहार में पूर्व निर्धारित परिवर्तनों से है। परिवर्तित व्यवहारों से तात्पर्य छात्रों के चिंतन-मनन, अनुभव करने तथा कार्य करने की विधियों में आवश्यक परिवर्तन करने से है। छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन उनके ज्ञान, कौशल, रुचि और अभियोग्यताओं में परिवर्तन के रूप में ही हो सकते हैं। संवेगों पर नियंत्रण सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण व्यवहारगत परिवर्तन है।

उद्देश्यों के निर्धारण के समय निम्नलिखित बातें ध्यान में रखना आवश्यक है।

1. उद्देश्य समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले हों।

2. उद्देश्य प्राप्यशील होने चाहिए।

3. उद्देश्य सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप होने चाहिए।

4. उद्देश्य व्यावहारिक होने चाहिए।

5. उद्देश्य छात्रों की आयु के अनुरूप होने चाहिए।

पर्यावरणीय शिक्षा एक नवीन विषय है। अभी पर्यावरण के प्रति सामाजिक चेतना का पूर्णतः विकास नहीं हो पाया है। इसी कारण अभी तक पर्यावरणीय शिक्षा के लिए समाज द्वारा कोई माँग प्रस्तुत नहीं की गई है। गत कुछ वर्षों से पर्यावरण से संबंधित कुछ समस्याओं ने व्यक्तियों, समाज व राष्ट्रों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित किया है, जिसका परिणाम पर्यावरणीय शिक्षा की माँग के रूप में देखा जा सकता है। पर्यावरण शिक्षा के लिए निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं

पर्यावरण शिक्षा के लक्ष्य (Goals of Environment Education)

1. जनता को पर्यावरण संबंधी ज्ञान कराना व सोचने की योग्यता का विकास करना। 

2.पारिस्थितिकी - संतुलन हेतु जागरूकता का विकास कराना।

3. मानव को यह अवबोधन करवाना कि वह उस व्यवस्था का अभिन्न अंग है, जिसमें मानव की संस्कृति तथा जैव भौतिक पर्यावरण आते हैं।

4. पर्यावरण संतुलन बिगाड़ने वाले कारकों की पहचान करना।

5. स्वयं की उन क्रियाओं का ज्ञान कराना जो पर्यावरण निरूपण के लिए उत्तरदायी होती हैं।

6. लोगों में पर्यावरण संतुलन बनाये रखने की रुचि पैदा करना। 

7. प्राकृतिक तथा मानव निर्मित जैव भौतिक पर्यावरण को समझने की सूझ पैदा करना व समाज में उसकी भूमिका समझाना।

8. जैव-भौतिक वातावरण की गणुवत्ता संबंधी समस्याओं के समाधान में सहभागी बनने हेतु जनता की मनोवृत्ति में बदलाव लाना।

9. प्राकृतिक संसाधनों का ज्ञान कराना और उनके उचित उपयोग की आदत का विकास करना।

 10. पर्यावरण नियोजन के लिए प्रशिक्षित करना।

पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य

(Aims of Environmental Education)

अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेन्स मानव पर्यावरण (जून, 1972) में जब पर्यावरण संरक्षण, रख-रखाव तथा सुधार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयासों की बात कही गई तब इस बात पर बल दिया गया कि इस समस्या के स्थाई हल के लिए नागरिकों को शिक्षित करना होगा और उन्हें जागरूक कर उनमें यह मानस बनाना होगा कि पर्यावरण की वर्तमान स्थिति पर काबू रखते हुए उसे आगे और विकृत होने से बचाया जाए तथा यह भी प्रयास किया जाए कि स्थिति में सुधार हो । तीन वर्ष बाद बेलग्रेड में आयोजित हुई ( अक्टूबर, 1975) अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में जिसमें 60 राष्ट्रों के 96 संभागी थे, 10 दिन तक विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। वहीं विस्तार में पर्यावरणीय शिक्षा के उद्देश्य, विषय वस्तु, शिक्षक-प्रशिक्षण, औपचारिक एवं अनौपचारिक तरीके, प्रत्येक आयु व स्तर के लोगों को सम्मिलित करने आदि पर निर्णय लिए गए। अनेक पूर्व में तैयार पात्रों की चर्चा को आधार बनाया गया जो UNESCO द्वारा प्रकाशित Treands in Environment Education (1977) में सम्मिलित है।

इस बेलग्रेड वर्कशॉप में कम-से-कम पंद्रह (15) दस्तावेजों को अंतिम रूप दिया गया, जो बाद में तिविलिसी (14-26 अक्टूबर, 1977) अन्तर्राज्यीय कान्फ्रेंस का आधार बने । यहीं यह निर्णय लिया गया कि विश्व के सभी देशों के लिए समान तथा व्यापक रूप से पर्यावरण शिक्षा के ऐसे वस्तुनिष्ठ उद्देश्य स्वीकार किये जाने चाहिए जो अत्यंत व्यावहारिक हों और समूची पर्यावरणीय समस्याओं को आत्मसात् कर सकते हों। उनको यहां प्रस्तुत किया जा रहा है -

'पर्यावरण शिक्षा' सभी व्यक्ति तथा समाज समुदाय का -

1. जागरूकता (Awareness) - सम्पूर्ण पर्यावरण और उससे संबंधित समस्याओं के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता देने में सहायक होहोती।

2. ज्ञान (Knowledge) - सम्पूर्ण पर्यावरण और उससे संबंधित समस्याओं की आधारभूत समझ प्राप्त करने तथा उसमें मनुष्य की जिम्मेदारी की भूमिका निभाने में सहायक हो।3. अभिवृत्ति (Attitude)- पर्यावरण के लिए गहरी चिंता करने, सामाजिक दायित्व निभाने तथा उसकी सुरक्षा और सुधार लाने के लिए किये जा रहे कार्यों में प्रेरित करने में सहायक हो।

4. कौशल (Skills) – पर्यावरणीय समस्याओं के हल खोजने के कौशल प्राप्त करने में सहायक हो। 

5. मूल्यांकन कुशलता (Evaluation Ability)  पर्यावरणीय उपाय तथा शैक्षिक कार्यक्रमों को पारिस्थितिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सौन्दर्यपरक और शैक्षिक घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन करने में सहायक हो।

6. सम्भागिता (Participation) - पर्यावरणीय समस्याओं तथा समस्याओं के उचित ढंग से हल निकालने की आश्वस्तता के प्रति महत्ता और जिम्मेदारी की भावना विकसित करने में सहायक हो। इनके अतिरिक्त पर्यावरण शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य भी हो सकते हैं।

1. सामाजिक भावनाओं का विकास- पर्यावरण शिक्षा के द्वारा छात्रों में सामाजिक भावनाओं का विकास किया जा सकता है।

2. उत्तम नागरिकता का सिद्धांत - शिक्षा का एक आवश्यक उद्देश्य श्रेष्ठ नागरिक तैयार करना है। उत्तम नागरिकता के विकास के लिए छात्रों में देश-प्रेम, अनुशासन, सहयोग, सहनशीलता, स्पष्ट विचार आदि गुणों के साथ-साथ उनमें प्राकृतिक संसाधनों के सही उपयोग तथा पर्यावरणीय समस्याओं को समझने एवं उनके समाधान के लिए तत्परता के गुण का विकास करना भी आवश्यक है। छात्रों को पर्यावरण के महत्त्व को समझाकर उनमें पर्यावरण अवबोध एवं पर्यावरण चेतना का विकास करना भी आवश्यक है। उत्तम नागरिक वही है जो कोई कार्य करने से पूर्व यह विचार करे कि उसका कोई कृत्य पर्यावरण के लिए हानिकारक तो नहीं है।

3. वातावरण से अनुकूलन - पर्यावरण शिक्षा का एक उद्देश्य छात्रों को पर्यावरण के साथ अनुकूलन स्थापित करने के लिए प्रशिक्षित करना है। टॉमसन के अनुसार, “शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य छात्र को उसके पर्यावरण के अनुकूल बनाना है ताकि वह जीवित रह सके और अपनी मूल प्रवृत्तियों को नियंत्रित रखने के लिए अधिक-से-अधिक सम्भावित अवसर प्राप्त कर सके।” उत्तम नागरिक वही है जो पर्यावरण को बिना हानि पहुँचाए उसमें रहकर सुखी जीवन व्यतीत कर सके।

4. पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के संबंध को समझना - पर्यावरण और स्वास्थ्य का घनिष्ठ संबंध है। स्वच्छ तथा शुद्ध पर्यावरण में मनुष्य स्वस्थ रहता है। पर्यावरण प्रदूषण अनेक रोगों को जन्म देता है। उदाहरण के लिए, अशुद्ध जल पीने से प्रतिवर्ष कितने ही लोग अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं। पर्यावरण शिक्षा का एक उद्देश्य छात्रों को उनके स्वास्थ्य पर पर्यावरण के पड़ने वाले कुप्रभावों का ज्ञान कराना है।

5. जनसंख्या वृद्धि का पर्यावरण पर प्रभाव का ज्ञान करवाना-पर्यावरण शिक्षा का एक उद्देश्य जनसंख्या वृद्धि का पर्यावरण की गुणवत्ता पर कुप्रभाव से अवगत करवाना है। भारत में सन् 1951 में कुल जनसंख्या 36 करोड़ 11 लाख थी जो 2001 में बढ़कर 1 अरब से ऊपर पहुँच गई। जनसंख्या वृद्धि का दबाव प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ता है। प्राकृतिक संसाधनों के अधिक दोहन से पारिस्थितिक संकट बढ़ता है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से छात्रों को जनसंख्या नियंत्रण का पाठ सिखाया जा सकता है। इस तथ्य को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

6. पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रेरित करना - पर्यावरण का संरक्षण मानव तथा समाज दोनों के लिए आवश्यक है। पर्यावरण शिक्षा का एक उद्देश्य छात्रों को पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रेरित करना है। पर्यावरण संरक्षण की तकनीक एवं उपायों का ज्ञान कराना आवश्यक है।

7. पर्यावरण के घटकों का ज्ञान प्रदान करना - पर्यावरणीय शिक्षा द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण के घटकों का ज्ञान छात्रों को करवाना चाहिए। ये घटक ही समष्टि रूप में पर्यावरण की रचना करते हैं। यह ज्ञान करवाना आवश्यक है कि किसी एक घटक के निरूपण से सम्पूर्ण पर्यावरण प्रभावित होता है। पर्यावरण के जैविक और अजैविक संघटक होते हैं। इनकी पूर्ण जानकारी छात्रों को करवानी चाहिए। 8. जनतान्त्रिक कुशलता का विकास- पर्यावरण को सुधारने का ध्येय प्रत्येक नागरिक के जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। पर्यावरण शिक्षा द्वारा यह भावना पैदा कर हम बालक को कुशल जनतांत्रिक नागरिक बना सकते हैं।

9. पर्यावरण से संबंधित कौशलों का विकास करना- पर्यावरण प्रदूषण रोकने के कौशल में छात्रों को पारंगत करना पर्यावरण शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। खाद्य पदार्थों में मिलावट की जाँच करने की तकनीक छात्रों को सिखाना आवश्यक है।

10. राष्ट्रीय धरोहर के प्रति निष्ठा- उनकी सुरक्षा एवं सम्मान की भावना का विकास करना भी पर्यावरणीय शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए।

11. पर्यावरण के संबंध में भावना, अभिवृत्तियों तथा मूल्यों का छात्रों में विकास करना भी इस शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए ।

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