वन विनाश ( कटाई) पर निबंध लिखें। Van Vinash Per Nibandh likhen.
377 views
0 Votes
0 Votes

वन विनाश ( कटाई) पर निबंध लिखें। Van Vinash Per Nibandh likhen.

1 Answer

0 Votes
0 Votes

वन क्षेत्रों में निरन्तर वृक्षों की कटाई तथा उसी अनुपात में वृक्षों को न लगाना बन विनाश होता है। पेड़ों के कटाव से वन क्षेत्र सीमित होता जाता है। प्राकृतिक पर्यावरण नवीन मानवकृत पर्यावरण में परिवर्तित हो जाता है। जलवायु मौसम तथा अन्य भौगोलिक दशाओं में परिवर्तन हो जाता है। ऑक्सीजन, जल, फल, मृदा एवं चारा-पत्ती वन की पर्यावरणीय उपज है। इनका अस्तित्व वन के सुरक्षित रहने पर ही हो सकता है। परन्तु यहाँ पर मानव की गतिविधियों का विनाशकारी एवं भौतिकवादी प्रभाव पड़ा है। वहाँ पर इनके अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है। वनों में एक प्राकृतिक व्यवस्था होती है। पेड़ पौधे, जीव-जन्तु एवं प्राकृतिक वातावरण के मध्य सामंजस्य विद्यमान होता है। मानव की क्रियाओं का दबाव ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता है इसमें असंतुलन बढ़ता जाता है।

भारत के वन विनाश में भारतीय वन अधिनियम 27 का महत्वपूर्ण योगदान है। इसमें वन श्रमिकों के परिवार को आठ हेक्टेयर वन साफ कर कृषि कार्य तथा पशुपालन करने का प्रावधान था। वन श्रमिक वनों को साफ कर अनेक गाँवों को आवासित किये। फलस्वरूप वन क्षेत्र सीमित होते गये। साथ-ही-साथ बंगला देश से आये अनेक शरणार्थियों को वन साफ कर आश्रय प्रदान किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी देश में वन विनाश एवं उसके परिणामों की चिन्ता नहीं की गयी। अनियंत्रित पेड़ों का कटाव जारी रहा। वन क्षेत्र 33 प्रतिशत से घटकर 22 प्रतिशत हो गया। विश्व में ब्राजील के बाद भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर सर्वाधिक वन प्रजातियाँ पायी जाती हैं। वन-विनाश पर नियंत्रण पाना नितान्त आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो अनेक जीव-जन्तु, पौध-प्रजातियाँ सदैव के लिए लुप्त हो जायेगी। पर्यावरण परिस्थितिकी पर घोर संकट उत्पन्न हो जायेगा।

भारत वर्ष अतीत में प्राकृतिक वनस्पति की दृष्टि से समृद्ध था। धरातलीय बनावट, जलवायविक दशाओं, खनिज संसाधनों की विपुलता, उर्वरक भूमि, जल की सुविधा आदि के कारण इस देश की जनसंख्या निरन्तर बढ़ती गयी। फलस्वरूप वनों पर दबाव बढ़ता गया। वन क्षेत्र निरन्तर सीमित होता गया। जनसंख्या वृद्धि ही नहीं अपितु अनेक कारक हैं जिससे वन विनाश हुआ है

(i) ऊर्जा स्रोत के रूप में वन,

(ii) बाँध परियोजनाओं का निर्माण,

(iii) कृषि क्षेत्र का विस्तार,

(iv) वन्य वस्तुओं का उद्योगों में प्रयोग,

(v) पशुचारण,

(vi) रेल तथा सड़क मार्गों का निर्माण,

(vii) झूमिंग कृषि

पूर्वोत्तर भारत के अलावा दक्षिणी भारत के केरल, कर्नाटक, मध्यप्रदेश आदि में भी झूमिंग कृषि का प्रचलन है। आन्ध्र प्रदेश तथा उत्कल के आदिवासियों द्वारा इस प्रकार की कृषि की जाती समय में यह प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है। परन्तु प्राचीन काल में इस कृषि से वनों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ था। भू-स्खलन, हिमस्खलन, मृदासर्पण, वनाग्रि, वन्य जन्तुओं आदि के द्वारा भी वनस्पतियों का विनाश होता है।

भारत में वन विनाश की समस्या अत्यन्त जटिल है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने स्पष्ट किया है कि यदि पेड़-पौधों के कटान पर नियंत्रण नहीं किया गया तो देश को गम्भीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। वास्तव में देश का एक बहुत बड़ा भाग वनों से रहित हो गया है। यहाँ वन संरक्षण की संकल्पना का कोई औचित्य नहीं है। इस भू-भाग पर वृक्षारोपण की योजनाओं द्वारा प्रकृति की कृत्रिम मौलिकता को पुनर्स्थापित की जा सकती है। जनसंख्या वृद्धि, परिवर्तित सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य, भौतिक आवश्यकतायें, आर्थिक विकास, भरण- पोषण की सुविधा, औद्योगीकरण-नगरीकरण, यातायात मार्गों का विकास, नहर एवं बांध निर्माण, तालाबों- झीलों का निर्माण आदि के कारण वनों का विनाश हो रहा है।

1. अनेक वृक्ष-प्रजातियाँ पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण एवं वांछनीय मानी जाती हैं। इनमें बहुत सी विलुप्त हो रही हैं। इन प्रजातियों को सुरक्षित वृक्ष प्रजाति घोषित करना नितान्त आवश्यक है।

2. पर्वतीय एवं पाठारी भू-भाग के तीव्र ढाल पर स्थित वृक्षों के कटाव पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।

3. भारत के उत्तरी - पूरबी पर्वतीय भागों में झूमिंग कृषि द्वारा वृहत स्तर पर वनों का विनाश हो रहा है। फलस्वरूप यहाँ के आदिवासियों की जीविका के लिए अन्य विकल्प की खोज करना देश के लिए आवश्यक है।

4. चारागाहों के अभाव में पशुओं का दबाव निरन्तर वनों पर बढ़ रहा है जिसमें वनों का विनाश हो रहा है। ग्राम समाज की भूमि अथवा कृषि कार्य के लिए बेकार पड़ी भूमि पर चारागाहों का विकास कर पशुओं के दबाव को कम किया जा सकता है। 

5. वन से रहित क्षेत्रों में पर्यावरणीय उपज वाले वृक्षों का विकास आवश्यक है। वृक्षारोपण काल में इसके पर्यावरणीय मूल्यों पर ध्यान देना चाहिए ।

6. पशु संख्या वृद्धि पर नियंत्रण कर वन कटाव को कम किया जा सकता है। साथ-ही-साथ वन्य जीव जन्तुओं के संरक्षण के लिए अभ्यारण्यों की स्थापना करनी चाहिए।

7. वन पर आधारित उद्योगों के विकल्पों की खोज कर इन पर प्रतिबंध लगाना वन विनाश नियंत्रण के लिए नितान्त आवश्यक है।

RELATED DOUBTS

Peddia is an Online Question and Answer Website, That Helps You To Prepare India's All States Boards & Competitive Exams Like IIT-JEE, NEET, AIIMS, AIPMT, SSC, BANKING, BSEB, UP Board, RBSE, HPBOSE, MPBSE, CBSE & Other General Exams.
If You Have Any Query/Suggestion Regarding This Website or Post, Please Contact Us On : [email protected]

CATEGORIES