भारत को जब आजादी मिली, तब जम्मू-कश्मीर महाराजा हरि सिंह द्वारा शासित रियासती राज्य था। मुस्लिम बहुत राज्य का नेतृत्व एक ऐसे हिंदू राजा के हाथों में था, जिनकी अपनी महत्वाकांक्षा थी। वह एक ऐसे स्वतंत्र राज्य के पक्ष में थे, जो न भारत से जुड़ा हो और, न पाकिस्तान से। तब तमाम भारतीय रियासतों के सामने भारत या पाकिस्तान में से किसी एक के साथ जाने का विकल्प था, लेकिन राजा हरि सिंह अक्टूबर 1947 तक अनिर्णय की स्थिति में रहे। वह तभी आगे, जब पाकिस्तानी सेना के साथ पख्तून जनजातीय समूह उनका राजपाट छीनने घाटी में घुस आए। तब हरि सिंह अपनी खुद की सेना में भी विरोध झेल रहे थे। परेशानियों से घिरकर ही वह भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय को तैयार हुए। ऐसा करते हुए भी उनकी कोशिश यही थी कि उनके पास किसी भी तरह से राजमुकुट रह जाए। भारतीय रिकॉर्ड के अनुसार, भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय पर 27 अक्तूबबर, 1947 को हस्ताक्षर हुए थे, उसके बाद ही भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर के मोर्चे पर तैनात हुए।
दूसरी ओर, पाकिस्तान इस विलय को चुनौती देता रहा है। उसके अनुसार, राज्य का नियंत्रण राजा हरि सिंह के हाथों में नहीं रह गया था। भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत सरकार ने कश्मीर में अपनी सेना भेज दी। और राजा से बलपूर्वक विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवा लिए। पाकिस्तान की आपत्ति का एक मुख्य आधार यह था कि जम्मू-कश्मीर मुस्लिम बहुल रियासत होने के बावजूद हिंदू बहुसंख्या वाले देश के साथ कैसे जा सकता है, यह तो द्वी-राष्ट्र सिद्धांत के खिलाफ है।
जब भारतीय सेनाएं जम्मू-कश्मीर में पाक सेना को पीछे धकेलकर हड़पी गई भूमि पर वापस कब्जा ले रही थीं, तब पंडित नेहरू ने विवाद के समाधान में मदद के लिए 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद से संपर्क किया। पंडित नेहरू के ही निवेदन पर संयुक्त राष्ट्र ने युद्ध विराम प्रस्ताव पारित किया और पाकिस्तान को हड़पे गए इलाके से हटने के लिए कहा। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में यह भी शामिल था कि भारत जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह करवाएगा। यह देखेगा कि वहां लोग किसके साथ रहना चाहते हैं। पाकिस्तान हड़पे गए क्षेत्र से नहीं हटा, तो भारत ने भी जनमत संग्रह नहीं करवाया। ऐसे में कश्मीर का एक हिस्सा गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान के अधिकार में रह गया और इसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहा जाने लगा। भारत और पाकिस्तान कश्मीर के लिए चार युद्ध लड़ चुके हैं- 1948, 1965, 1971, 1999 (करगिल युद्ध ) ।
वर्ष 2015 में सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री की हैसियत से न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की 70वीं महासभा के अधिवेशन को संबोधित किया था। इस दौरान उन्होंने पाक को पूरे विश्व के सामने जमकर लताड़ा था। उन्होंने खुलेआम पाकिस्तान को आतंकवाद की फैक्ट्री कहकर संबोधित किया था। उनके इस भाषण की पूरे विश्व में चर्चा हुई थी।
सुषमा स्वराज ने कहा था कि पाक जो खुद को आतंकवाद से पीड़ित बताता है दरअसल झूठ बोल रहा है। जब तक सीमापार से आतंक की खेती बंद नहीं होगी भारत पाकिस्तान के बीच बातचीत नहीं हो सकती। भारत हर विवाद का हल वार्ता के जरिए चाहता है किंतु वार्ता और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते। इसी मंच से पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पाक और भारत के बीच शांति पहल का एक चार सूत्रीय प्रस्ताव रखा था, मैं उसका उत्तर देते हुए कहना चाहूंगी कि हमें चार सूत्रों की जरूरत नहीं है, केवल एक सूत्र काफी है, आतंकवाद को छोड़िए और बैठकर बात कीजिए
केन्द्र की मोदी सरकार ने दिनांक अगस्त 2019 को लोकसभा में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की घोषणा की और विधेयक जो राज्य सभा और लोकसभा से 6 अगस्त को पारित हो गया। इस ऐतिहासिक फैसले से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो गया। आज से पहले जम्मू-कश्मीर में दोहरी नागरिकता होती थी किन्तु अब हर वर्ग का कश्मीरी भारत का नागरिक हो गया। पहले कश्मीर का अपना झंडा होता था, अब भारत का तिरंगा झंडा ही होगा। यही नहीं पहले जम्मू-कश्मीर का अपना कानून था, अब भारतीय संविधान लागू हो गया। अब अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर में पाँच साल पर विधान सभा का चुनाव होंगे। पहले बाहरी लोग जम्मू कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे किन्तु अब सम्पत्ति खरीदने पर कोई पाबन्दी नहीं होगी। वहाँ का एक उपराज्यपाल होगा जिसके अधीन पुलिस होगी। वहाँ रहनेवाले अल्पसंख्यकों को अब 10% आरक्षण मिलेगा। अब वहां संविधान का अनुच्छेद 356 लागू होगा। अब वहां हर भारतीय कानून तथा सरकारी लोक-कल्याण योजनाएँ लागू हो सकेंगी।
लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग राज्य बना दिया गया है जो केन्द्र शासित प्रदेश होगा। यहाँ विधान सभा नहीं होगी। जबकि जम्मू-कश्मीर में विधान सभा होगी। इस बिल के पारित होते ही धारा 35A का अस्तित्व भी समाप्त हो गया।
इसमें शक नहीं कि धारा 370 के हटने के बाद कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवाद पर लगाम लगी है क्योंकि भारत का पैसा जिस रूप में आतंकवाद में कश्मीरी अलगावादी लगा रहे थे उस पर लगाम लगी है। कश्मीरी जनता के उत्थान में अभी समय लगेगा। अब कश्मीर सही मायने में भारत का अभिन्न अंग बन गया है और केन्द्र शासित प्रदेश बन गया है।
पूर्व सैनिकों ने कहा कि इस फैसले से कश्मीर में तैनात जवानों का हौसला बढ़ेगा । पूरा देश एकसूत्र में बंधेगा। देश की एकता और अखंडता के साथ ही सामरिक महत्व की दृष्टि से भी यह फैसला महत्वपूर्ण है। पूरे देशवासियों का लम्बा इंतजार खत्म हुआ। कश्मीर में अलगाववाद की राजनीति खत्म होगी। इससे पाक प्रायोजित आतंकी गतिविधियाँ भी रूकेंगी। जम्मू-कश्मीर की सूरत और सेहत दोनों बदलेगी। घाटी के विकास में बाधक बन रहा था धारा 370 | इस इलाके में अब हिन्दू मुस्लिम आबादी का समीकरण भी बदलेगा। अभी वहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। हैं। इस फैसले से भारतीय संविधान को नया विस्तार मिला है।
इस फैसले से कश्मीरियों की स्थिति अच्छी होगी, आतंकवाद का खात्मा होगा।