शारीरिक पोषण, मानसिक विकास और जीवन के लिए भोजन, पानी और हवा की आवश्यकता होती है। इसलिए आवश्यक हो जाता है कि जल एवं वायु की स्वच्छता के महत्व को समझा जाय । आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों के सोपानों का तीव्रता से तय करते जा रहे मानव के लिए सावधानी और संवेदनशीलता अनिवार्य हो उठी है। अगर पर्यावरण के प्रति मनुष्य के अन्दर अब भी संवेदना नहीं जगी तो वह दिन दूर नहीं, जब समग्र सृष्टि विनाश के दलदल में जा गिरेगी।
पर्यावरण अन्य कुछ नहीं, हमारे आस-पास का परिवेश है। अर्थभेद से राजनीतिक और सामाजिक के साथ ही सांस्कृतिक पर्यावरण भी होते हैं और ये भी आज कम चिन्ताजनक स्थिति में नहीं हैं। पर्यावरण का यह संदर्भ आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण इसलिए हो गया है कि इनके दुष्परिणाम सीधे जीवन-मृत्यु के बीच की दूरी लगातार कम करते जा रहे हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और हवा इन पाँच तत्वों से सृजित इस शरीर के लिए इन तत्वों की शुद्धता का महत्व कभी कम नहीं होता। इनमें संतुलन आवश्यक होता है। पेड़-पौधे, नदी, पर्वत, झरने, जीवत्र-जन्तु, कीड़े-मकोड़े आदि सब मिलकर पर्यावरण को संतुलित रखने में सहयोग करते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों के चमत्कारों ने प्रकृति को चुनौती के रूप में देखना आरंभ किया और उसकी घोर अवहेलना एवं उपेक्षा की जाने लगी। पेड़ों का काटना, पशु-पक्षियों का मारा जाना, नदी-नालों में कचरे गिराना, बड़ी-बड़ी बाँधों के निर्माण आदि के अविवेकी प्रयोगों ने सचमुच पर्यावरण को खतरे में डाल दिया है। लोग ऐसा मानने लगे कि पेड़ों का अधिक होना किसी देश के पिछड़ेपन का प्रमाण है। इनकी जगह मिलों की चिमनियाँ दिखाई पड़नी चाहिए। लेकिन आज स्पष्ट हो चुका है कि पेड़ों को छोड़कर चिमनियों के सहारे मानवता अधिक दिनों तक नहीं चल सकती। बाघ और सिंह जैसे हिंसक पशुओं के जीवन की भी महत्ता अब समझी जाने लगी है और उसके वध को भी दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है। स्पष्ट हो चुका है कि बड़ी-बड़ी बाँधों से लाभ तो है, पर उनके प्रभाव से होनेवाली हानियों की मात्रा भी अकल्पनीय है।