Ans. अति प्राचीन काल से शेर और बाघ भारत की सांस्कृतिक परम्परा के अंग रहे हैं, क्योंकि वनराज की उपाधि से विभूषित इन्हें शौर्य का प्रतीक माना जाता है। किसी को शेर दिल कहना शौर्य और प्रभुत्व का प्रतीक है। शेर हमारे राष्ट्रीय शक्ति के प्रतीक भी रहे हैं। अशोक का सिंह चतुर्भुज आज गणतंत्र भारत के गौरव का चिन्ह है। भारत में शेरों और बाघों के लिए अनुकूलतम प्राकृतिक आवास्य रहा है, जिसके कारण देश के लगभग सभी क्षेत्रों में ये कम या अधिक पाये जाते हैं। यहाँ इनकी अनेक उपजातियाँ भी पायी जाती हैं। इनमें बाघ (Tiger), शेर (lion), चीता (Panther) और तेंदुआ (Leopard) अधिक महत्वपूर्ण प्रजातियाँ हैं जो हिमालय से तमिलनाडु और गुजरात से असम तक पाई जाती हैं। मुगल काल तक इनकी संख्या बहुत अधिक थी। ब्रितानी काल में वन विनाश और शिकार के कारण इनकी संख्या तेजी से घटने लगी। 1910 में एक ऑकलन के अनुसार भारत में 40 हजार से अधिक रायल बंगाल जाति के शेर थे, जिनकी संख्या घटकर 1982 में 1500 रह गई। 1972 के ऑकलन के अनुसार भारत में बाघों की संख्या मात्र 1827 बताई गई। देश में शेरों की घटती संख्या के कारण कुछ जीव विज्ञानियों और वन्य जीव रक्षक संस्थाओं ने भारत सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया है। कहा गया कि यदि इन महत्वपूर्ण वन्य जीवों को सुरक्षा प्रदान नहीं किया गया तो निकट भविष्य में विलुप्त होकर इतिहास की विषयवस्तु हो जायेंगे। फलतः 1973 में भारत सरकार के निर्देशन पर भारतीय वन्य जीव बोर्ड (Indian Board of Wildlife) के द्वारा टाइगर रिजर्व (Tiger Reserves) परिक्षेत्रों का निर्माण किया गया। ऐसे बाघ सुरक्षित क्षेत्र उन राज्यों में स्थापित किये गये जहाँ शेरों का प्राकृतिक आवास्य था। प्रथम चरण में भारत के नौ राज्यों में ऐसे नौ टाइगर रिजर्व क्षेत्र स्थापित किये गये, जिसके अन्तर्गत 10017 वर्ग किमी० क्षेत्रफल सीमांकित किया गया। 1987 तक दो अन्य टाइगर रिजर्व क्षेत्र स्थापित किये गये । सामान्यतः शेर सुरक्षित क्षेत्रों के विस्तार के लिए न्यूनतम 300 वर्ग किमी० क्षेत्र का होना आवश्यक माना गया है। 1983 में चार अन्य क्षेत्रों को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया, जिसके फलस्वरूप 24712 वर्ग किमी० भू-क्षेत्र शेरों के लिये सुरक्षित प्रखण्ड बन गया। 1987 में दुधवा राष्ट्रीय पार्क (उत्तर प्रदेश) को बाघ रिजर्व क्षेत्र में समाहित कर लिया गया जिसके फलस्वरूप भारत के 12 राज्यों में टाइगर रिजर्व क्षेत्रों की संख्या बढ़कर 16 हो गई और क्षेत्रफल 26 हजार वर्ग किमी० से अधिक हो गया। तदनन्तर 1989 में कलाकंद मुण्डन थुराई, 1990 में वाल्मीकि, 1993 में पेंच और 1994 में तदोबा-अन्धेरी और बान्धवगढ़ बाघ आरक्षित क्षेत्रों के जुड़ जाने के बाद बाघ रिजर्व अभ्यारण्यों की संख्या बढ़कर 21 हो गई है, जिनका क्षेत्रीय विस्तार 30497 वर्ग किमी० हो गया है।
बाघ आरक्षित क्षेत्रों में प्रमुख भाग को मूल क्षेत्र (Core area) कहा जाता है, जबकि बाहरी भाग को सुरक्षित क्षेत्र (Buffer area) के नाम से जाना जाता है। बाघ परियोजना के अनुसार मूल क्षेत्र को अधिक सुरक्षित और सुविधायुक्त रखा जाता है ताकि बाघ भयमुक्त होकर विचरण कर सकें।1973 में जब बाघ परियोजना शुरू की गई तो इसके लिये दो मुख्य उद्देश्य निर्धारित किये गये -(क) भारत में वैज्ञानिक, आर्थिक, सांस्कृतिक सौन्दर्यात्मक और पारिस्थितिकी के महत्त्व के लिये बाघों की उपयोगी संख्या को बनाये रखना।
(ख) ऐसे जैविक महत्त्व के क्षेत्रों को शिक्षा और मनोरंजन के लिये राष्ट्रीय विरासत के रूप में इनके सतत् परिक्षण का उपाय करना।अब तक के प्रयासों के फलस्वरूप भारत के 13 राज्यों में 21 बाघ परियोजनाओं की स्थापनाहो चुकी है।