मनोवैज्ञानिक पर्यावरण छात्रों के चहुँमुखी विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। किसी भी छात्र का विकास इसके मनोवैज्ञानिक विकास पर निर्भर करता है तथा मनोवैज्ञानिक विकास के लिये उचित मनोवैज्ञानिक पर्यावरण होना चाहिये । सामान्य रूप से मनोवैज्ञानिक पर्यावरण के अन्तर्गत सकारात्मक सोच का विकास, आत्म-विश्वास का विकास, आत्मीयता का विकास, रुचि का विकास, अवधान का विकास, रचनात्मकता का विकास तथा स्मृति आदि के विकास को सम्मिलितकिया जाता है।
इसके छात्रों को अच्छे कार्यों के लिये विविध प्रकार के साधनों से अभिप्रेरित करना चाहिये तथा उसके मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करना चाहिये। मनोसामाजिक पर्यावरण का स्वरूप इस प्रकार का होना चाहिये जिसमें छात्र अपने व्यक्तित्व का विकास पूर्ण रूप से कर सकें। मनोसामाजिक पर्यावरण के उचित विकास द्वारा छात्रों में भय एवं उद्वेग को दूर करने का प्रयास करना चाहिये।
छात्रों में संवेगात्मक स्थिरता का विकास करना चाहिये। छात्रों के समक्ष इस प्रकार का वातावरण उपस्थित किया जाये, जिससे वह आत्मानुशासित होते हुए अपने विकास का मार्ग स्वतः निर्धारित करने लगें । सामान्य रूप से जिन परिवारों में लड़ाई-झगड़े होते हैं तथा कलहपूर्ण स्थिति होती है उन परिवारों के बालक पूर्ण रूप से मानसिक विकास नहीं कर पाते, क्योंकि उनका मनोसामाजिक वातावरण उचित नहीं होता।
जिन परिवारों का वातावरण सामाजिक सम्बन्धों पर आधारित, अनुशासित तथा एक-दूसरे की समस्याओं का समाधान करने वाला होता है उस परिवार के बालकों का मानसिक विकास उच्च होता है, क्योंकि उन परिवारों का मनो-सामाजिक उचित होता है।