भू-राजस्व की यह व्यवस्था अवध और मराठा अधिकृत क्षेत्रों में (1803-04) में लागू की गयी। यह जमींदारी व्यवस्था का संशोधित स्वरूप था।
इस व्यवस्था में लगान महाल (गाँव या जागीर) के आधार पर तय किया गया था। लगान चुकाने की जिम्मेवारी समस्त महाल की थी।
किसान का जमीन पर व्यक्तिगत अधिकार नहीं रहा, बल्कि सारी भूमि महाल के नियंत्रण में थी।
इस व्यवस्था में मार्टिन वर्ड ने संशोधन करके इसे उत्तर-पश्चिमी प्रदेश में लागू किया। इस व्यवस्था में भी कृषकों का शोषण हुआ।