पर्यावरण व मानव का संबंध अति प्राचीन है। मानव भी अन्य जीवों की भाँति प्रकृति की देन है, परंतु मानव और जीवों में अंतर यह है कि मानव में अपने पर्यावरण के साथ अनुकूलन तथा प्रतिकूल पर्यावरण के साथ निरंतर संघर्ष करने की क्षमता है, जो जीवों में नहीं है। अपने पर्यावरण के साथ समायोजन का प्रतिफल मानव का क्रमिक विकास है।
विल्सन डी. वालेस ने इस विषय में कहा है कि “पर्यावरण वह हिंडोला है जिसमें मनुष्य अपनी बुद्धिमता से स्वयं के उद्देश्यों को पूर्ण कर अपने भाग पर स्वामित्व स्थापित करता है।" ("Environment is the cradle in which man's genious awaits the promptings which gives him mastery over his fate." — Willson de Walls) पर्यावरण अध्ययन की प्रकृति बहुआयामी है, क्योंकि इसका संबंध प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों से है।
उदाहरण के रूप में वनस्पति विज्ञान, जन्तु विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जैव विज्ञान, भू-विज्ञान, खनन विज्ञान व समुद्री विज्ञान आदि से पर्यावरण अध्ययन जुड़ा हुआ है। अतः यहां पर सर्वप्रथम हमें पर्यावरण अध्ययन के विषम में जानना अति आवश्यक है।