आज हमारा देश आत्मनिर्भर बनाने वाले सुधारों की खोज में है। हमारे सामने कई बाधाएँ हैं। भारत में व्यवसाय आसान नहीं है। यहाँ का बुनियादी ढांचा और माहौल ऐसा है कि निवेश और उद्यमशीलता को बढ़ावा नहीं मिलता।
चीन पर भारत की अपनी निर्भरता भी महत्वपूर्ण है। भारतीय निर्यात में जोड़े गए मूल्य ( वैल्यू एड ) का एक-चौथाई से अधिक का अकेले चीन द्वारा योगदान दिया जाता है। इस सदी की शुरूआत में ऐसा नहीं था, लेकिन पिछले दो दशक में चीन पर भारत की निर्भरता कई गुना बढ़ गई है। खास यह है कि वह निर्भरता हाल के महीनों में भी कम नहीं हुई है, जबकि अप्रैल से ही भारतीय सैनिक चीन के साथ तनावपूर्ण टकराव की स्थिति में है। इस बीच भारत के व्यापार खाते में चीनी आयात का हिस्सा आत्मनिर्भरता के हो-हल्ले व बयानबाजी के बावजूद बढ़ा है। मार्च २०२० में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में भारत में होने वाले कुल आयात में चीन का हिस्सा १४ प्रतिशत था। इस वर्ष मार्च से सितम्बर तक यह हिस्सेदारी बढ़कर १९ प्रतिशत हो गई है। हालांकि भारतीय निर्यात में चीनी वैल्यू एड के हिस्से का डाटा इस वर्ष के लिए अभी उपलब्ध नहीं हुआ है। अभी कोविड महामारी से लड़ने के लिए चीनी फार्मा सामग्री और सुरक्षा किटों पर निर्भरता का मतलब है कि अन्य क्वाड सदस्य भी इस साल चीनी आयात पर बहुत अधिक निर्भर
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करने वाले कोविड- १९ के कारण कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादन प्लेटफार्मों के कुछ हिस्सों को चीन से हटाने पर विचार कर रही है । हालांकि जब अलग-अलग जगह कारखाने रखने के लाभ हैं, तब यह उपाय न तो आसान है और न ही सस्ता । कोविड जनित मंदी ने नकदी की समस्या को बढ़ाया है और कई कंपनियां तत्काल दूसरे देश में निवेश में सक्षम नहीं हो सकती।
अर्थशास्त्री मानते हैं कि भारत या किसी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए चीन से अचानक अलग होना किसी के लिए मुश्किल होगा। लेकिन लंबे समय में देखें, तो चीन से प्रतिद्वंद्विता करने की क्षमता भारत में है। चीन से आर्थिक रूप से अलग होने की जरूरत पर कम से कम क्वाड देशों के बीच एक मन तो बन रहा है, और इस तरह की स्थिति का लाभ उठाने के लिए भारत वक्त के साथ खड़ा हो सकता है।
न केवल २००८ के बाद से वैश्विक उत्पादन में भारत की भागीदारी घटती गई है, दूसरे देशों से जुड़ने से होने वाले भारत के लाभ में भी गिरावट आई है। अब भारत अपने निर्यात को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए दूसरे देशों से कच्चा माल आयात कर रहा है।
भारत में व्यापार बाधाओं को कम करने, बुनियादी ढांचे का विस्तार करने और वित्त तक पहुंच में सुधार करने की जरूरत है। इसमें दूसरे देशों के साथ सही गठजोड़ करने से मदद मिल सकती है। हाल की कुछ नीतियां जैसे औद्योगिक गलियारे, डी- लाइसेंसिंग और मेक इन इंडिया इत्यादि सही दिशा में उठाए गए कदम हैं, लेकिन ये कदम अभी अपने जमीनी प्रभाव में कम है। भारतीय उद्योगों को मजबूती देने के लिए आयात शुल्क अगर बढ़ाया जाए तो आयात की लागत बढ़ जाएगी, जिससे भारतीय उद्योगों को ही नुकसान पहुंचेगा।
भारत बहुत सारी सामग्री का आयात करता है। यहां उद्योग व कल-कारखानों को चलाने के लिए भी बाहर से कच्चा माल लेने की जरूरत बढ़ रही है। हम निर्यात योग्य जो सामग्री या उत्पाद बनाते हैं, उसमें भी हम बहुत हद तक आयात पर निर्भर हैं।
भारत को ज्यादा से ज्यादा ऐसे उत्पादन करने चाहिए जो पूरी तरह से भारतीय हों। साथ ही, किसी भी उत्पादन के लिए आयात पर निर्भरता कम से कम करने में ही लाभ है। दुनिया की फैक्टरी बनने के लिए भारत की आत्मनिर्भरता प्राथमिकता होनी चाहिए। दुनिया में कोई देश तत्काल आत्मनिर्भर नहीं हुआ है। वर्षों के प्रयास से धीरे-धीरे उत्पाद दर उत्पाद और क्षेत्र दर क्षेत्र आत्मनिर्भरता के लिए नीतिगत और व्यावहारगत दृढ़ता के साथ काम करना होगा। अपना दूरगामी और स्थाई लाभ देखना होगा। भारत में सुधार हो रहे हैं फिर भी इससे हम कब तक आत्मनिर्भर होंगे कहना मुश्किल है।