मौर्य प्रशासन का वर्णन करें। Maurya Prashasan Ka Varnan Karen
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मौर्य प्रशासन का वर्णन करें। Maurya Prashasan Ka Varnan Karen

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मौर्य शासकों ने न सिर्फ एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, बल्कि इसे स्थायित्व प्रदान करने के लिए एक सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था भी कायम किया।

मौर्य शासन-व्यवस्था का उद्देश्य राज्य को स्थायित्व प्रदान करना, अधिक से अधिक कर वसूलना एवं लोक-कल्याणकारी कार्य करना था।

मौर्य शासन पद्धति की व्याख्या संक्षेप में इस प्रकार की जा सकती है—

i. सम्राट : मौर्य शासन-व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु सम्राट था। किन्तु वह निरंकुश शासक के रूप में कार्य नहीं करता था, उसे प्रजा की इच्छा का सदैव ध्यान रखना पड़ता था।

ii. मंत्रि-परिषद : राजा को परामर्श देने के लिए एक मंत्रि-परिषद भी थे। इनकी संख्या 12 से 15 तक होती थी । इन्हें नगद वेतन के रूप में 12000 पण वार्षिक वेतन मिलता था।

iii. पदाधिकारी : शासन को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए बड़ी संख्या में पदाधिकारियों की नियुक्ति की गई थी।

समाहर्ता, सन्निधाता, सेनापति, दुर्गपाल, व्यावहारिक, प्रदेष्टा, दौवारिक आदि महत्त्वपूर्ण पदाधिकारी थे।

iv. न्याय व्यवस्था : न्याय के मामलों में राजा सर्वोच्च अधिकारी था। किसी भी मामलों की अन्तिम अपील राजा के पास होती थी।

न्याय के लिये दो प्रकार के न्यायालय स्थापित किये गये थे

  • धर्मस्थीय न्यायालय
  • कंटक शोधन न्यायालया।

दण्ड व्यवस्था कठोर थी; जुर्माने से लेकर प्राण दण्ड तक का विधान था।

v. सैन्य व्यवस्था : मौर्यों के पास एक विशाल एवं सुसंगठित सेना थी, जो पांच भागों में विभक्त थी— 

  1. पदाति
  2. अश्वारोही
  3. रथ सेना
  4. गजरोही और
  5. नौ सेना

vi. राजस्व व्यवस्था :  भूमिकर आय का सबसे प्रमुख साधन था जो कुल उपज का 1/4 से 1/6 भाग तक वसूल किया जाता था।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि मौर्य शासकों ने विशाल साम्राज्य की स्थापना के साथ ही प्रशासन का समुचित प्रबन्ध भी किया था।

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