दीपावली
भूमिका, मनाने का समय एवं ढंग, पर्व मनाने के पीछे की कथाएँ एवं मान्यताएँ, साफ-सफाई एवं पर्यावरण शुद्धि का पर्व, पटाखों से हानि, उपसंहार
भूमिका – “दीप जले द्वार द्वार, अन्न-धन मिले अपार। सदियों का रोग-शोक, जले ज्यों फतिंग भार। पहिने सुहाग वसन मानवता नागरी।”
मनाने का समय एवं ढंग - दीपावली ज्योति का पर्व है। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व है। कार्तिक मास की अमावस्या को यह पर्व उल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है। दीपों की जगमग रोशनी अमावस्या के घनघोर . अंधकार को समाप्त कर देती है। किसी को भी अमावस्या की घनेरी रात का आभास तक नहीं होता।
इस पर्व पर घर-घर लक्ष्मी और गणेश की पूजा होती है। हिंदुओं में ऐसी मान्यता प्रचलित है कि दीपावली की रात घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है, अतः देर रात तक लोग अपने-अपने घरों के सारे दरवाजे खोलकर रखते हैं। दीवाली के दिन हलवाई और आतिशबाजी की दुकानों पर विशेष भीड़ होती है।
पर्व मनाने के पीछे की कथाएँ एवं मान्यताएँ – दीपावली मनाए जाने के पीछे ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक तथा वैज्ञानिक कारण हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम रावण का वध करने के पश्चात अयोध्या लौटे थे। इस खुशी में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए थे। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन ब्रज की जनता को इंद्र के क्रोध से बचाया था। सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद सिंहजी भी इसी दिन कारावास से मुक्त हुए थे। अतः, इस रात गुरुद्वारों को विशेष रूप से दीपपंक्तियों से सजाया जाता है। इस रात गुरुद्वारों की शोभा देखते ही बनती है।
साफ-सफाई एवं पर्यावरण शुद्धि का पर्व – दीपावली वर्षाऋतु की समाप्ति पर मनाई जाती है। लोग अपने-अपने घरों और दुकानों की सफाई करवाते हैं ताकि वर्षाऋतु की सीलन, उस सीलन से उत्पन्न कीड़े-मकोड़े और तरह-तरह के कीटाणु और रोगाणु नष्ट हो जाएँ। मिट्टी के घरों गोबर से पोतने और ईंट के मकानों में चूने की पुताई करने के पीछे यही उद्देश्य होता है कि हानिकारक कीड़े-मकोड़े नष्ट हो जाएँ।
पटाखों से हानि – पटाखे और आतिशबाजी पर अधिक खर्च करना किसी भी तरह ठीक नहीं। इससे पारिवारिक बजट पर अनावश्यक बोझ बढ़ता है और वायु तथा ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि होती है। असावधानीपूर्वक पटाखे चलाने से कभी-कभी दुर्घटना भी हो जाती है। बच्चों को अभिभावकों की देखरेख में ही पटाखे चलाने चाहिए।
उपसंहार – इस पर्व के दिन हमें संकल्प लेना चाहिए कि जिस तरह हम बाहर के अंधकार को परास्त करते हैं, उसी तरह अपने भीतर के अंधकार को भी परास्त करें। दीपावली की खुशी पूरे समाज की खुशी है। इसे परिवार, जाति या अमीरों तक सीमित रखना इसकी आत्मा के विपरीत है।