महँगाई पर निबंध लिखें । Mahangai Per Nibandh Likhen.
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महँगाई पर निबंध लिखें । Mahangai Per Nibandh Likhen.

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अपने देश में महँगाई(inflation) के एतिहासिक स्वरूप पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि द्वितीय महायुद्ध के समय यह प्रवृत्ति वस्तुओं के अभाव के कारण उग्र रूप में प्रकट हुई थीं। लोगों को कपड़े तक कोटे से प्राप्त होते थे और तेल के अभाव में अंधेरे में भोजन करना पड़ता था। कुछ वस्तुओं की कीमतें तो आसमान छूने लगी थी। लेकिन युद्ध के बाद और देश आजादी के उपरान्त यह स्थिति समाप्त हो गयी। 

आजादी के बाद 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय फिर हमारी अर्थ व्यवस्था पर तनाव आया और मूल्य वृद्धि प्रारंभ हुई। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और फिर 1971 और 1999 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद जो अर्थ व्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ पड़ा उसने हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया और मूल्य वृद्धि एक प्रवृत्ति के रूप में विकसित होने लगी।

पिछले सत्तर दशकों में नेताओं की कृपा से इस देश में भ्रष्टाचार को पनपने का खुला अवसर प्राप्त हुआ है। चुनावों के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से चन्दा लेना, विभिन्न रैलियों और आयोजनों के लिए चन्दा लेना एक आम प्रवृत्ति बन गयी। ये चन्दे अधिकतर व्यापारियों से वसूले जाते रहे। कहीं-कहीं व्यापारियों द्वारा अपने लाभ के लिए भी नेताओं पर पैसा व्यय किया जाने लगा। इन सभी अतिरिक्त व्ययों की भरपाई करने के लिए व्यापारी वर्ग ने कीमतों में वृद्धि करनी प्रारंभ कर दी।

इसी तरह पिछले दो दशकों में अपराधी तत्त्वों की राजनीति में भागीदारी बढ़ती गयी है। ये अपराधी तत्त्व राजनीति की खाल हनकर शेर बन गये हैं। इधर एक दशक से धीरे-धीरे अपहरण का धन्धा भी पनपने लगा है जो पिछले वर्षों में कामधेनु उद्योग बन गया है। अधिकतर अपहरण व्यापारियों या उनके पुत्रों का हो रहा है। उनसे मोटी रकम ली जा रही है। न देनेवालों की हत्याएँ हो रही हैं। जो व्यापारी इन्हें पैसा देते हैं वे येनकेन प्रकारेण इस कमी को पूरा करने के क्रम में मूल्य बढ़ाते हैं।

पिछले दशकों में घूसखोरी एक सर्वस्वीकृत प्रवृत्ति बन गयी है। चपरासी से अधिकारी तक निन्यानवे प्रतिशत लोग या तो घूसखोर हैं या कमीशनखोर । काम करने के लिए पुजापा चढ़ाना एक अघोषित नियम बना हुआ है। इस चारित्रिक पतन का एक पक्ष तो पैसा कमाना है और दूसरा पक्ष उस पैसे में विलासिता की सामग्रियों को खरीदना है।

इसका परिणाम यह हुआ कि विलासिता की आवश्यकताओं से जुड़ी सामग्रियों पर पैसा व्यय करने या उनको सामाजिक हैसियत का प्रतीक मानने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इस कारण उपभोक्ता सामानों की कीमत पर असर पड़ा है और उससे मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति के क्रम में मूल्य वृद्धि हो रही है।

सारतः अर्थशास्त्र(Economics) का सीधा-सा सूत्र अब समाजशास्त्र(Sociology) की जटिलता में उलझ गया है। अनेक कारणों ने मिलकर महँगाई को बढ़ाने में योगदान किया है। इन कारणों का सीधा असर भोजन, वस्त्र जैसी आवश्यक वस्तुओं पर पड़ा है और लगातार मूल्य बढ़ने से जन समुदाय त्राहि-त्राहि कर रहा है। इस माह सामान की जो कीमत है वही अगले माह रहेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। सामान का अभाव नहीं होता है लेकिन मूल्य अवश्य बढ़ जाता है। सरकार द्वारा या जन आन्दोलनों द्वारा इसे घटाने या इस पर अंकुश लगाने के सारे प्रयत्न बौने पड़ जा रहे हैं।

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