आचार-विचार के पथ से भ्रष्ट हो जाना ही भ्रष्टाचार है। मानव का कोई भी आचरण जो सही लीक से हट कर गलत सुविधा और इच्छा के कारण च्युत हो जाय भ्रष्टाचार कहा जायेगा। पथच्युति तो जीवन के सभी क्षेत्रों में वर्जनीय और निन्दनीय है परन्तु "भ्रष्टाचार" शब्द खासकर सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्रों में हो रहे कुकर्म और कुव्यवस्था के संदर्भ में रुढ़ हो गया है। प्रशासन तथा समाज में फैली दुव्यर्वस्था, कुरीति और अनियमितताओं के लिए एक शब्द प्रचलित हो गया है - भ्रष्टाचार ।
भ्रष्टाचार मानवता के लिए जहर है तो राष्ट्रीय प्रगति के रास्ते का रोग। व्यक्तिगत लोभ और लाभ जब अपनी संकुचित सीमाओं का लम्बा वितान खींचता है तो राष्ट्रीय-रोग 'भ्रष्टाचार' की वृद्धि होती है-कौम की काया जर्जर होती है, देश के विकास में बाधा उत्पन्न होती है। भ्रष्टाचार आधुनिक भारत की सबसे बड़ी और सच्ची पहचान है। इसका प्रचार सामान्य स्तर से व्यापक स्तर पर नहीं बल्कि ऊपर से नीचे की ओर होता है। लोकतंत्रात्मक चुनाव प्रणाली की जड़ में इसका जीवाणु जीता है और सम्पूर्ण देश का लहू जहरीला और मैला करता है।
हमारे जीवन का तमाम क्षेत्र भ्रष्टाचार से प्रभावित है। हमारे देश का कोई भी ऐसा विभाग नहीं जिसमें आचरण की च्युति का उदाहरण हमें प्राप्त न हो जाय। भ्रष्टाचार के अन्तर्गत मोटे तौर पर हम जिन असंगतियों को गिन सकते हैं वे हैं- रिश्वतखोरी, जातिवाद, भाईभतीजावाद, काला धंधा, अनैतिक लाभ और लोभ के लिए किया जा रहा व्यापार। सब की जड़ में बैठा है अर्थ जो हर तरह से अनर्थ पर आमादा है। इसी भ्रष्टाचार ने बोफोर्स तोप सौदा, हर्षद मेहता कांड और ताजा हुए चीनी घोटाले से हमारे देश में भ्रष्टाचार का कीर्तिमान कायम कर हमारा सिर नीचे कर दिया है।
ऊपर से आने वाली स्कीमों का बीच में ही गोल-माल, कागजी दस्तखत से नहरों, बाँधों, सड़कों और पुलों का निर्माण, बोगस बिल, आफिशर्स कमीशन, सामानों में मिलावट, सबूत मिटाने के लिए खून खराबा, जमाखोरी और मुनाफाखोरी, काले कामों और अवैध व्यापारों के रूप में हम अपने राष्ट्र में व्यापक पैमाने पर फैले भ्रष्टाचार को पहचान सकते हैं।
आज जरूरत है कि देश को खोखला करने वाली इस बुराई को जड़ से खत्म कर दिया जाए । जनता को किसी राजीव, राव, अटल या नटवर की कथाओं, कारनामों और सुरक्षा से कम, देश की रक्षा से ज्यादा वास्ता है। भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए हमें आपादमस्तक व्यवस्था बदलनी होगी, निर्वाचन पद्धति में तब्दीली लानी होगी, नैतिकता को तरजीह देनी होगी, साथ ही साक्षरता और विवेक को व्यापक बनाने के उपाय खोजने होंगे। अन्यथा भ्रष्ट व्यवस्था से उपजती भ्रष्ट पीढ़ी देश को कहाँ ले जायेगी कहना मुश्किल है। वोल्कर रिपोर्ट काँग्रेसी शासन के भ्रष्टाचार का एक ताजा उदाहरण है।